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________________ सभी जगह उस समय वहां पर सुखही सुख था। सब प्रसन्न थे नहीं किसी को कोई दुख था । दुष्चरित्रता दृष्टि कोण में नहीं पाती थी। ___ नहीं किसी की वृत्ति कुकर्मों पर जाती थी॥ ४ ॥ पोरवाल थी ज्ञाति "विमल" अति पाप भीरु था। ___ काश्यप उसका गोत्र वीर रण में सुधीर था॥ श्री देवी अर्धीगि सुगुणि अति रूपवान थी। वर्ती जग में आन, दया अरु धर्म खान थी॥ ५ ॥ "विमल श्री सुप्रभात" सकल गुर्जर ने गाया। जन्म सफल कर लिया अतुल जस जग में पाया ॥ ., कुल देवी "अंबिका" हर्षयुत धनं अति दीन्हा। खर्चे अर्षों दाम * पुण्य अति संचय कीन्हा ॥ ६ ॥ गुर्जर भाग्याकाश स्वच्छ था अति प्रसन्न था। था सब जगह सुकाल, अतुल धन और अन्न था ॥ फैल रहा परकाश विमलसा "विमलचन्द्र" का । हटा रहा था अन्धकार जो गुर्जर भर का ॥ ७ ॥ धीर वीर उस समय सभी थे गुर्जर पासी। "प्राग्वाट" अबके से थे नहीं रुग्ण विलासी ॥ . ज्ञायोचित ही कार्य सभी कोई करते थे। प्राग्वाट हैं "प्रगट मल" सार्थक करते थे ॥ ८ ॥ सब कोई उस समय प्रेम पूर्वक रहते थे। कभी न कोई झूठ बात मुंह से कहते थे ॥ .. पंचायत में न्याय कार्य होता था ऐसे। स्वयं धर्म ही राज न्याय करता हो जैसे ॥ ६ ॥ एक समय का ज़िकर भीम ने हुकम सुनाया। सिन्धु देश और चेदि देश का करो सफाया ॥ .. * असंख्यात रुपया। । भीमदेव, गुजरात के राजा। "प्राण
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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