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________________ पा इटार्ड का शिष्य था और उसने इटार्ड के पास से ही मूदो के उद्धार के लिये जीवन समपर्ण करने की प्रतिज्ञा ली थी तो भी उसने अपना जीवन भादर्श संत सायमन और उसके सम्प्रदायों में से निर्माण किया था। उसने २५ वर्ष की उम्र में एक मृढ लड़के को शिक्षा देने का काम हाथ में लिया। अठारह महिने की शिक्षा के बाद यह लड़का अपनी इन्द्रियों का उपयोग करना सीखा। वह याद रख सकता था, मुकाबला कर सकता था बोल सकता था और पढ़ सकता था। सेगुइन ने इस विजय से मूद लोगों की शिक्षा के लिये एक पाठशाला स्थापित की। पांच वर्ष के बाद पेरीस की "ऐकेडेमी ऑफ सायन्स" (विज्ञान परिषद् ) ने उसके दश विद्यार्थियों की परीचा लेकर उनका नतीना प्रगट किया "सचमुच ही मूदों की शिक्षा का प्रश्न सेगुइन ने ही ढूंढ़ निकाला है" देश २ के शिक्षा-शास्त्री सेगुइन का काम देखने के लिये पेरीस आने लगे और सभ्य संसार में इसी के सदृश एक के बाद एक उत्तरोत्तर पाठशाला स्थापित होने लगी। कम नसीब से १८४८ में फ्रान्स के विप्लव की वजह से उसको अमेरीका जाना पड़ा और फ्रान्स में उसके काम का अन्त हो गया। अमेरीका में गये बाद वहां भी उसने यह काम जारी किया। वह बीस वर्ष के परिश्रम बाद मर गया। सेगुइन की शिक्षा पद्धति के चार विभाग किये जा सकते हैं। १-शिचा का सिद्धान्त । २-क्रियातन्तुओं की शिक्षा । ३-इन्द्रियों की शिक्षा। ४-बुद्धि की तथा नीति की शिक्षा । १-शिक्षा के सिद्धान्त-सेगुइन का पहिला सिद्धान्त व्यक्तित्व को मान देने का था। वह कहता है कि पहिली दृष्टि में सब बच्चे एक सदृश दिखते हैं। दूसरे दर्शन के समय उनमें अगणित भेद दिखते हैं। अधिक सूक्ष्मता से देखने ये भेद समझे जा सकते हैं और काबू में एक समूह में देखे जा सकते हैं। हमें शिक्षा में किसी रुख को अनुकूलता करने की है, किसी का विरोध करने का है,
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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