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________________ ( ४४ ) मनुष्य की 'समझ शक्ति' पर एक निबन्ध लिखा । वह अपने दूसरे कामों के साथ अपने शेठ के पुत्र और पीछे से शेठ के प्रपौत्र के शिक्षा पर दृष्टि रखता था । इस अनुभव के बल पर सन् १६८३ में उसने 'शिक्षा के विषय में कुछ विचार ' नामक पुस्तक प्रकाशित की। दर असल यह पुस्तक इस विषय पर विशेष प्रभाव नहीं डालती है । एक गृहस्थ पिता के पुत्र के शिक्षा के सम्बन्ध में एक खानगी शिक्षक के विचारों पर रचा हुआ यह पुस्तक था । इसके मृत्यु बाद एक दूसरा पुस्तक प्रसिद्ध हुआ उसमें युवान मनुष्यों के शिक्षा के विषय में लिखा गया है। यद्यपि इन पुस्तकों का प्रदेश बहुत छोटा था, तो भी इन पुस्तकों के विचारों का असर इङ्गलेन्ड और उसके आस-पास के देशों पर हुआ । उस समय एक शिक्षक के पास ५० से १०० विद्यार्थी अभ्यास करते थे । पहिले से निश्चित अभ्यास के अनुसार उनको पढ़ाया जाता था और शिक्षा पद्धति में निर्फ गोखणपट्टी ही मुख्य थी । व्यक्तिगत शिक्षा का कोई प्रबन्ध न था । समूह - शिक्षा की वजह से व्यक्तित्व पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। जॉन लॉक में डाक्टर की दृष्टि थी अतएव उसने मालूम किया कि ज्यों डाक्टर अपने रोगी की सेवासुश्रूषा करते हैं त्यों शिक्षक को चाहिये कि वह विद्यार्थी के स्वभाव और परिस्थिति के अनुसार काम करे। लॉक कहता है कि ज्यों एक चहरे से दूसरा चहरा भिन्न होता है त्यों एक मन से दूसरा मन भिन्न होता है । ढूंढने पर बालक की ऐसी जोड़ नहीं मिल सकती कि जो शरीर मन से सम्पूर्ण मिलती हों । इसलिये हरएक बालक को व्यक्तिगत लिख कर शिक्षा देनी चाहिये। यहां पर व्यक्तिगत शिक्षा का विचार लॉक से शुरू होता है । व्यक्तिगत विद्यार्थी ही शिक्षा का असल विधेय है और यह बात उसकी एक पुस्तक से मालूम होती है। लॉक ने खानगी शिक्षा दी थी अतएव उसको इसका अनुभव था और उसमें से उसके विचार उद्भवित होते हैं । आज तक दी जाने वाली शिक्षा समूहगत थी उसमें अधिक कठिनाई थीं और अनुभव से लॉक को निष्फलता ही दृष्टिगोचर हुई । अतएव उसने संसार के सामने यह सिद्धान्त रक्खा कि शिक्षा व्यक्तिगत ही होनी चाहिये और वह वस्तुतः सीखने वाले की इच्छानुसार होनी चाहिये । न कि सीखने वाले को उसके अनुसार काम करना चाहिये। इसी विचार में आजकल की प्रयोगशाला का मूल है। सीखने के विषय से सीखने
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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