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________________ ( २५ ) - वस्तुस्थिति तो ऐसी है कि मरने वाले के पीछे आत्म-भावना करने की हो, वैराग्य भावना ने पोषण देकर जलते कलेजे को शान्ति देने के योग लोग देखाव के लिये अथवा रूढी वश होकर रोना अथवा पीटना महा मूर्खता का. चिह्न है और महा-आर्तध्यान तथा दाम्भिकता है अलावा इसके पाप-बन्धन का भी कारण है। ____ उपरोक्त बातों से प्रापको मालूम हो गया होगा कि मरने वाले के पीछे खर्च करने की रीति अति दुष्ट है। मरने वाले की असहाय विधवा, या उसके गरीब भाई आदि की दीन छीन दशा की सम्हाल लेना या उनको सहायता पहुंचाना दूर रहा पर उसका थोड़े बहुत बचे बचाये धन पर भी खाली लोटा लेकर दौड़ना क्या मनुष्यत्व है। हे दया के हिमातियों सिर्फ लीलोतरी और सुकोतरी की भिन्नता में रह कर इस मानव दया करने के प्रसंग पर निष्ठुर व्यवहार का आचरण करते हो क्या यह तुम्हारे धर्म पर कलङ्क लगाने वाली बात नहीं है ? वस्तुतः यह खर्च करने की प्रथा मिथ्यात्व के मूल में से पैदा हुई है इसलिये ऐसी निरर्थक और हानिकारक प्रथा को उखेड़ कर फैंक देना जरूरी है अलावा इसके जो धन खर्च किया जाता है उसको शक्ति अनुसार शिक्षा प्रचार में, सा धार्मिकों के उद्धार कार्य में अथवा परोपकार क्षेत्र में खर्च करना आवश्यक है। . खराब रिवाज फैलने का मूल कारण अज्ञानता ही है। स्त्री यह सृष्टि की माता है इसलिये उसकी अज्ञान दशा संसार के लिये भारी श्राप रूप गिनी जाती है। नारी जीवन में ज्ञान-दीपक का प्रकाश हुए बिना जगत का अन्धकार कभी दूर नहीं हो सकता। नौ महीने तक बालक को अपनी कुक्षी में रखने वाली माता है उसको जन्म देकर बड़ा कर पोषण करने वाली माता है। माता की गोद में बालक बहुत काल तक पलता है और उसी के अधिक सहवास से वह बड़ा होता है यही कारण है कि माता के संस्कार बालक में उतरते हैं। यदि माता सुसंस्कार वाली हो तो बालक के जीवन में अच्छे संस्कार उतरते हैं। माता के विचार, वाणि और बर्ताव ऊच्च हो तो उसका सुन्दर वारसा बालक को मिलता है। ऊच्च विचार वाली माता का ऊच्च वातावरण बच्चे को ऊच्चगामी बनाता है। और अक्सबात बीच में नहीं आवे तो उसका सारा जीवन-प्रवास आदशे रूप बन जाता है निःसन्देह बालक बालिकाओं के सुधार का मुख्य आधार माता पर है इसलिये हर एक माता को अपनी जाति के लिये, अपने बच्चे के लिये और
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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