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( २६ ) अपने कुटुम्ब-परिवार तथा देश के लिये विचार, वाणी और आचरण में ऊच्च बनना परम आवश्यक है और समाज तश देश के कल्याण के लिये प्राशीर्वाद रूप है। परन्तु यह ऊच्च आदर्श शिक्षा बिना नहीं आ सकता । अतएव स्त्रीशिक्षा की अति आवश्यकता है। पश्चात्य तत्त्ववेत्ता स्माइल्स कहता है कि
"If the moral Character of the people mainly depends upon the education of the home-then, the education of women is to be regarded as a matter of national inportance."
अगर मनुष्य का नैतिक चरित्र मुख्यता गृह शिक्षा पर आधार रखता हो, तो स्त्री-शिक्षा का सवाल प्रजाकी आवश्यकता का गिना जा सकता है।
बच्चों का यह स्वभाव है कि वे जैसा देखते है वैसा करते हैं दूसरों के देखा देखी नकल करने को वे जल्दी झुक जाते हैं, घर में जैसा देखते हैं वैसा उनका जीवन गठित होता है। घर के मनुष्यों की बोल चाल और व्यवहार हलका हो तो बालक भी वैसा ही सीखमा। स्कूल में उसको कितना ही अच्छा शिक्षण क्यों नहीं दिया जाय परन्तु घर की बुरी हवा के आगे रद्द हो जायेगा। स्कूल के संग से वह घर के संग में अधिक रहता है अतएव घर के आंगन में जो संस्कार घड़े जाते हैं वे स्कूल की शिक्षा से कभी नहीं घड़े जा सकते । बलिक स्कूल में के मिलते सदाचार के पाठों को घर की अज्ञान-प्रवृत्तिये धो देती है । वास्तव में बच्चे के जीवन-विकास के लिये पहिली और सच्ची स्कूल जो घर गिना जाता है वह शिक्षा-सम्पन्न और चारित्र-विभूषित होना चाहिये स्माइल्स कहता है कि
"Home is the first and most important School of character. It is there that every human being receives his best moral training or his worst.”
घर यह चारित्र की पहिली और पूर्ण अगत्य की स्कूल है। मनुष्य अच्छी से अच्छी नैतिक शिक्षा अथवा खराव से खराब शिक्षा वहां से प्राप्त करता है।
आज की कन्यायें कल की माता हैं अतएव उनको पुस्तक ज्ञान की पूर्ण जरूरत है किन्तु गृह शिक्षा की, मातृत्व शिक्षा की और सदाचार शिक्षा की इस से भी अधिक जरुरत है । विद्या, शिक्षा और सदाचार, शील, संयम, और लज्जा, बल हिम्मत और विवेक, पति भक्ति और कुटुम्ब सेवा और अक्लमंदी ये स्त्री की रमणीय विभूति हैं। ललना का ललित लावण्य है, सुन्दरी का