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। २४ ) के कौनसी कम मिसालें हैं? चतुर्वर्षा संघ में स्त्री का भी माननीय आसन है । सुलसा जसी श्राविका के गुणों को स्वर्ग के सम्राटों ने भी गाये हैं और महायोगेन्द्र भगवान महावीर ने अपने श्रीमुख से प्रशंसा की है इस लिये स्त्री वर्ग भी दान, सन्मान, वात्सल्य के पात्र हैं। जननी के सदृष्य, भगिनी के सदृष्प, पुत्री के सदृष्य उनका वात्सल्य करना पुन्यकारी और कल्याणकारी है।" ... .
उपरोक्त विवेचन से आपको यह विदित हो गया होगा कि आचार्य महोदय के ये उदगार स्त्रीजाति के गौरव पर कितना अच्छा प्रकाश डालते है । परन्तु आज अज्ञान दशा ने स्त्रीसमाज की शोचनीय दुर्दशा कर दी है। प्रज्ञान दशा का यह फल है कि अनेक हानि कारक रीति रिवाज, वेहम तथा ढोगों ने उनके जीवन को निःमत्व बना दिया है। यदि उनके अन्दर जरा मी अक्ल होती तो ये स्त्रिये बीच बजार में मरने वाले के पीछे छाती पीटते नहीं निकलती। यह बात शर्म भरी है और इस दुष्ट रिवाज से कई एक स्त्रियों को क्षय और छाती के दर्द लागू हो जाते हैं और इसका गर्भवतियों के गर्भ पर बहुत खराब असर पड़ता है इस लिये रोने पीटने के रिवाज को सर्वथा बंध कर देना जरूरी है। ___मृतक के घर पर बाहर गांव के लोग मंडली के रुप में दूर से पुकार करते हुए आते हैं और उनके साथ मृतक के घर वाली औरतों को भी परगिया लेने
और छाती पीटना पड़ती है इतना ही नहीं परन्तु एक के बाद एक बाहर गांव के आने वाले मेहमानों के टोलों की वजह से गरीब के घर पर इतना सख्त बोझा पड़ता है कि उस के सुलगते हृदय पर गर्मागर्म तेल डाला जाता है । गरीब पति के मरने पर उसकी निराधार बाल विधवा एक कौने में रो रही है दुःख के सागर में पड़ी हुई वह बाला हृदयभेदक आक्रन्द कर रही है तब दूसरी तरफ बाहर से आये हुभे घी में लछपता माल मलिदा उड़ा रहे है यह कैसी निष्टुरता? क्या ये शोक जाहिर करने आये है कि माल झपटने आये हैं। उन्होंने सहानुः भृति भी कहां बतायी है ? सन्तोष अथवा शानि देने के बजाय वे उल्टा माल उडाते हैं कि जिससे दुःखियों के शोक सन्ताप को और अधिक उत्तेजन मिलता है काण मकाण जाने वाले रोने पीठने के अज्ञान-जाल या दम्भ-जाल बिछा कर उन दुःखियों को अधिक रुलाते हैं। रोने वाला ज्यों अधिक जोर के स्वर से रोये और छाती पीटने वाला अधिक जोर से छाती पीटे तो अधिक प्रशंसा होती है।