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जिसमें लग्न का यह बड़ा भाव लेने की शक्ति उत्पन ही नहीं हुई तो समझे लेना चाहिये कि उसकी अभी तक विवाह करने की उमर ही नहीं हुई। ___ लग्न की आड़ में प्रेम, प्रेम में श्रद्धा और श्रद्धा में ही एकता है अतएव इस देश में बीच में पड़ कर जो लग्न होता है वा खेल की वस्तु है।
युवान पुरुष और युवान स्त्री दश के अथ मिले और दश में से एक को पसंद करे ऐसा एक लग्न का खास नियम होना चाहिये।
प्रेम की परीचा किस प्रकार हो ? प्रेम अंधा है सब स्त्रियों तथा पुरुषों में यह स्त्री या पुरुष श्रेष्ठ है, ऐसा अनुभव करने से प्रेम नहीं होता। प्रेम स्वार्थी है मैं उसको चाहता हूं वह दूसरे किसी को चाहता है यह सहन नहीं हो सकता। सर्वदा देखने की इच्छा होती है। क्यों उसको देखना नहीं चाहती १ तो भी देखना चाहता हूं इसी का नाम प्रेम है ।
अपने देश में प्रेम शब्द अपवित्र गिना गया है इसका कारण यह है कि प्रेम अपने देश में सर्वदा खराब प्राकार धारण करता आया है। लेकिन प्रेम स्वर्ग की वस्तु है। ईश्वर के हाथ से डाला हुआ स्वभाविक भाव है। ..
प्रेम से प्राकर्षित होकर जब पुरुष और स्त्री लग्न के सम्बन्ध से गठित होते हैं तब वे अपने २ सिर पर नाना प्रकार के कर्तव्य का बोझा लेते हैं। अपने सुख को भूलकर स्वामी वा पत्नी को सुखी करना, धीरज और सहनशीलता को धारण करके एक दूसरे का कहर भौर अपराध माफ करने चाहिये, वात्सल्य
और शासन के साथ बच्चों की रक्षा और शिवा आदि का सर्व बोझा उस समय लिया जाता है। जो ये सब भार लेने को असमर्थ हो अथवा लेना न हो तो वे लग्न कदापि न करें। इसलिये पुरुष या स्त्री का ऐसी ऊमर में विवाह न करना चाहिये जिस ऊमर में कर्तव्य का भार उठाने की या समझने की शक्ति न हो और वहन करने की इच्छा उत्पम हुई हो। ...पालक अपने दुख सुख और भविष्य के भले बुरे के विचार नहीं कर सकते। जिस दिन से भले बुरे का विचार और इच्छा की उत्पत्ति हो वह दिन मनुष्य जीवन का एक बड़ा दिन है और समझना चाहिये कि लग्न करने के योग्य सबब का प्रारम्भ हो गया है। . .