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पुरुष की भूल जो पत्नी की दृष्टि में आवे वह उसके विषय में योग्य सूचना करे तो पति को भी शान्तिपूर्वक सुनना चाहिए । परस्पर की भूल होने पर एक दूसरे को कहने का अधिकार है और एक दूसरे को शान्ति पूर्वक सुनना तथा भूल से पीछे हटना यह दोनों का धर्म है, विचारशील पस्नी सो ऐसी बात को बहुत करके हृदय में ही समावेश कर लेगी और उसको प्रायः समय विचार कर वैसा करना भी चाहिए, क्योंकि पति पत्नी संसार रथ के दो चक्र हैं और दोनों चक्रों की बराबरी में ही रथ बराबर चल सकता है । भक्तिशीला पत्नी की तरफ पति का भी हृदय उतना ही प्रेममय होना चाहिए कि जितना पत्नी का हृदय पति की तरफ प्रेममय होता है। यदि एक कठोर और दूसरा नम्र, एक सुगुणी और दूसरा दुर्गुणी एक रम्रिक और दूसरा निःरास, एक प्रेमी और दूसरा अप्रेमी, एक नीति सम्पन और दूसरा लम्पट हों तो ऐसे पतिपत्नी के गृह संसार को ब्रह्मा भी दूर से ही नमस्कार करते हैं ।
सारांश-विवाह का फल यह है कि विवाहित दोनों प्राणियों के प्रेम तंत्री के नाद एक स्वर, एक राग और एक लय के साथ निकलने चाहिए। एक उद्देश्य की पूर्ति के लिए शोभित पुष्पित बगीचे के दो सुकोमल फूल अभिभिन्न रूप से अपने अपने मन मोहन आमोद से फैलते विश्वेश्वर के श्री चरण में लोप हो जाते हैं ।
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लग्न का पशु भाव यह है कि इससे समाज प्रवाह की रक्षा होती है और मनुष्य के लोहू मांस वाले शरीर की एक स्वाभाविक कमी दूर होती है।
लग्न का भाव यह है कि यह दोनों हृदय को एकत्र खींचता है, प्रीति और सद्भाव आदि से जीव को मधुमय करता है और दोनों हृदय को परितृप्त करता है।
लग्न का दैव भाव यह है कि लग्न प्रीति के सूत्र में गठित होकर एक आत्मा को दूसरे के सुख के लिये अपना स्वार्थ भूलने की शिक्षा देता है। हृदय मनुष्य का सुख है उसका अनुभव करने में सहायता देता है ।