SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०५) वाला, दुराचार एवं कुमार्ग से बचानेवाला और मापत्ति में धैर्य संचाने वाला सच्चा सखा है। वह मनुष्य जो अपने पूर्वजों के सुकृत्यों से परिचित नहीं अघसर पड़ने पर दुराचार के अंधेरे कूप में गिर सकता है, विश्वासपात और देश व जाति द्रोह कर सकता है किन्तु जो मनुष्य यह जानता है कि मेरे पूर्वजों ने असंख्य द्रव्य के लोभ को ठुकरा कर देशद्रोह अथवा विश्वासघात नहीं किया। शरीर का तुच्छ मोह त्याग कर अपनी मान पर मर मिटे अनेक प्रलोभनों अथवा दारुण वेदनाओं को सन्मुख देख कर भी कुल में कलंक नहीं लगने दिया-वह कुमार्ग में प्रवेश करते २ भी रुक जायगा। उसके बापदादों के उज्वल चरित्र उसके नेत्रों के सामने नाचने लगेंगे। क्योंकि इतिहास ही संसार में एक ऐसी वस्तु है, जो पतितों को उठा कर उन्नति के उच्चतम शिखर पर बैग देता है, जो निर्बलों को बलवान, निर्धनों को धनवान, निर्गुणों को गुणवान, भीरुओं को साहसी, कायरों को वीर, कुमार्गरतों को सदाचारी और सोती हुई कौमों को जाग्रत कर देनेवाला है। इस पर से पाठक समझ गये होंगे कि जातियों के उत्थान में इतिहास कितना महत्व पूर्ण हिस्सा रखता है । 'महावीर' के पाठकों अर्थात् भारतीष पोरवाल समाज का ध्यान हम इस ओर भाकर्षित करना चाहते हैं। हमारे सिरोहीनिवासी पोरवाल सुधारकों ने अखिल भारतवर्षीय पोरवालों का संगठन करने के लिये सम्मेलन तो कर दिया, उसके सिद्धान्तों के प्रचार के लिये 'महावीर' मासिक पत्र भी निकाला अब उनको चाहिये कि वे पोरवाल जाति का प्रामाणिक एवं विस्तारित इतिहास भी तैयार कर स्वजाति के चरणों में बरें। पोरवालों का प्राचीन इतिहास सद्भाग्य से बड़ा ही उज्ज्वल और गौरवपूर्ण है। लोकिन यह कार्य इतना आसान नहीं है और न एक दो व्यक्तियों से या पांच पचास रुपयों से ही पार पड़नेवाला है । इसमें अनेक व्यक्तियों के पुरुषार्थ और हजारों रुपयों के व्यय की आवश्यकता है। राजनीति निपुण, रणवीर एवं दानवीर वस्तुपाल तेजपाल के चरित्र की प्रशंसा करनेवाले अर्थात् उनके चरित्र को अपना जीवन आदर्श माननेवाले पोरवाल धनाढ्यों के लिये क्या यह पात असंभवित या अशक्य है ? क्या इस जाति में धन की कमी है। मान 'पोरवाल युवकों की क्या दशा है ? पोरवाल समाज में आज कौनसी रूविये
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy