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सागर में डूबते हैं और हर्षित् भाव से शीघ्र प्रश्न करते हैं कि जैन धर्म क्या है ? उसके ( Fundamental Teachings ) मुख्य सिद्धान्त क्या हैं? परन्तु अफसोस ! न तो वहां पर अपने समाज के तरफ से कोई उपदेशक रहता है और न ऐसा कोई (Literature or tracts) साहित्य अथवा निबन्ध वहाँ उन लोगों को बांटा जाने का साधन है कि जिसमें से वे अपनी कुछ जिज्ञासा पूरी कर सकें । उनके उस समय की जिज्ञासावृत्ति का क्या वर्णन करें। इन बातों के समझने के लिये वे लोग राजपूताना होटल से रुपये देकर एक ( Interpreter ) दुभाषिये को लाते हैं और वह स्वार्थी केवल उनको खुश करने के लिये मन माना झूठा वर्णन (Misinterprettion) बतलाता है। जिस (Carvation) कारिगीरी में जैन धर्म के पूर्व ऐतिहासिक विषय का महत्त्व हो, उसको कुछ का कुछ बतलाता है, जैसे भगवान् श्री ऋषभदेव की मूर्ति को भीम की मूर्त्ति बतला देता है, अम्बिका आदि अधिष्ठायक देव की मूर्त्ति होवे उसको उसकी औरत बतलाता है और जब वे लोग भगवान् श्री के जीवन के आदर्श तथा सिद्धान्त सम्बन्धी प्रश्न करते हैं तो बतलाता है कि इसने बहुत से राक्षसों को मारे हैं इसलिये हिन्दू लोग इसको पूजते हैं। हाय अफसोस ! क्या करें, कहां विश्वोपकारी तीर्थंकर देवों का आदर्श जीवन और उनके विश्वकल्याणकारी अनुपम सिद्धान्त ! परन्तु हमारे में स्वमताभिमान न होने से यह दुःख सहन करना पड़ता है। जैसा हाल माउन्ट भाबू पर है उसी तरह ( Visitors ) प्रेक्षक लोग कलकत्ते के उक्त जैन मंदिर में भाकर भी जैन धर्म जानने की जिज्ञासा से धर्म सम्बन्धी प्रश्न पूंछते हैं परन्तु वहां भी कोई उपदेशक या साहित्य का साधन नहीं है । कलकत्ते में तो सुबह से शाम तक ( Visitors ) प्रेक्षकों का मेला जमा रहता है और हजारों की संख्या में श्राते जाते हैं। अगर इन दो स्थानों पर अच्छे उपदेशक और साहित्य अथवा छोटे २ ट्रेक्टों के बांटने के साधन कर दिये जावें और मुख्यतया युरोपीयन, पारसी और बंगाली आदि पढ़े लिखे प्रेक्षकों के ( Complete address ) पूरे पते ले लिये जावें और बाद में ( Correspondance ) पत्र व्यवहार द्वारा तथा साहित्य भेजने आदि से सम्बन्ध जारी रखा जावे तो जैन सिद्धान्तों की सत्यता में स्वभाविक ऐसी अपूर्व शक्ति है कि सहज ही में विश्वव्यापी बन जावें इसमें कोई श्राश्वर्य जैसी बात नहीं है ।