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विक्रमसी कमर बांध पहाड़ पर चढ़ने को उद्यत हुआ। वहां ठहरे हुए जम समुदायको भाव युक्त नमस्कार किया और विदा ले पहाड़ पर चढ़ना आरम्म किया । सबकी दृष्टि उसी के ऊपर पड़ रही थी । देखते देखते विक्रमसी अदृश्य होगया ।
विक्रमसी सिंह मारने की प्रबल भावना को लेकर एक के बाद एक पहाड़ की सीढ़ियों को पार कर रहा था। गर्मी एवं श्रम के कारण उसके कपड़े पसीने में तरबतर होगये थे | ज्यों ज्यों वह ऊपर चढता था, त्यों त्यों उसकी भावना भी आगे आगे बढ़ कर प्रबल होती जाती थी । इस प्रकार विक्रमसी पहाड़ की चोटी पर चढ़ गया ।
समय ठीक मध्यान का था। गर्मी में सूर्य की तेजी का क्या कहना | सिंह शान्ति लेने के लिये एक वृक्ष की शीतल छाया के नीचे निद्रा में घोर हो रहा था । विक्रमसी भी वहां जा पहुंचा और अपने हृदय में कहने लगा कि सोते हुए पर वार करना निर्बल तथा कायरों का काम है । अतः उसने सिंह को ललकार कर उठाया। सिंह अपनी शान्ति भंग करने वाले की ओर लपका. विक्रमसी भी उसका प्रतिकार करने को तैयार ही था। उसने भी शीघ्रता से अपने हाथ रही हुई मुग्दल का उनके मस्तक पर एक ही वार ऐसा किया कि सिंह की खोपड़ी चूर-चूर हो गई। उसके सिर से रक्तधारा बहने लगी, तथापि वह पशुओं का राजा था । वह भी अपना बदला लेने को उद्यत हुआ। वह खड़ा हो विक्रमसी की ओर झपटा। विक्रमसी घण्ट की ओर दौड़ कर जहां घण्ट बजाने जाता है इतने ही में तो सिंह का एक पंजा विक्रमसी पर ऐसा पड़ा कि, वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। एक ओर विक्रमसी पड़ा हुआ है तो दूसरी ओर सिंह। दोनों ही आखरी स्वांस ले रहे थे । विक्रमसी को मरते २ विचार हुआ कि, मेरी मनोकामना तो पूरी हो गई, किन्तु नीचे के व्यक्ति क्यों कर जानेंगे कि, मैंने सिंह को मार दिया है ।
उपर्युक्त विचार आते ही विक्रमसी ने अपने पास रहे हुए कपड़े को शरीर के घाव पर मजबूत बांध दिया और लड़खड़ाता हुआ खड़ा हुआ और खूब