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________________ ( ४० ) उम्र क्रोध से एक दूसरे के गाल भंग कर देते हैं और थोड़े ही समय में उनके मुँह फिर जाते हैं । प्रवेश के वश होकर वे राक्षसों की तरह लड़ते हैं हम सब जानते हैं कि ऐसे कलह, ऐसी निन्दा ऐसी दोषदृष्टि और ऐसी तकरार का परिणाम सिर्फ एक ही हो सकता है और इन्हीं कारणों से कभी सुख उत्पन्न नहीं हो सकता यह बात निर्विवाद सिद्ध है । कई एक मनुष्यों ने निरकुंश भावेश के वश होकर अपने कुटुम्ब के मनुष्यों और मित्रों को मार दिये हैं कि जिनको दस मिनट पहले मारने की कोई बात नहीं थी जो मनुष्य स्वभाव से ही सज्जन होते हैं वे भी क्रोध से अन्धे बन जाते हैं तब वे राक्षसी गुनाह करते हैं । मेरे परिचय की एक स्त्री बहुत क्रोधांध बन जाती है कि उसका गुस्सा उतर जाने के बाद वह सम्पूर्ण थक जाती है कई दिनों तक वह बालक के सदृश निर्बल रहती है और किसी भयङ्कर संकट में से निकली हुई मालूम होती है । क्रोध के वश हुए बाद हमेशा उसके मस्तक में वेदना होती है अथवा उसको किसी दूसरी तरह का शारीरिक दुःख होता है । तीब्र इच्छा ज्ञानतन्तुओं के समूह को बहुत छिन्न भिन्न कर देती है और उसका भोग दीर्घ काल पर्यन्त बहुत अशक्त रहता है इस बात को वैद्य लोग अच्छी तरह से जानते हैं। मगज में इस भयङ्कर राक्षस का अमल रहने से सिर्फ एक ही वर्ष में एक स्त्री के चेहरे को निष्तेज हुआ देखा है कि उसके मित्र श्किल से उसको पहिचान सकते थे । ईर्षा जब एक दफा मनुष्य को पंजे में ले लेती है तब वह जीवन के समग्र दृश्य को फिरा देती है और उसको अपना रंग-अप करती है। प्रत्येक वस्तु इस दाहक वृत्ति का रंग धारण करती है। मनुष्य की विचार शक्ति मन्द पड़ जाती है और वह सम्पूर्ण इस राचस के पंजे में फँस जाती है । इस भयङ्कर मानसिक शत्रु का संयोजन करने से सिर की रचना भी दब जाती है । बार २ हमारे सुनने में आता है कि लोग क्रोधावेश में आकर मर जाते हैं। किसी भी कारण से एक दम उग्र क्रोध करने से ज्ञानतन्तुओं को बहुत सख्त धक्का पहुंचता है कि जिससे किसी वक्त हृदय खास करके निर्बल हो जाता है और
SR No.541505
Book TitleMahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size11 MB
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