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________________ (३६) .. समस्त दुष्ट मनोवृत्तियों क्रोध, इर्षा वैर और तिरस्कार ने मनुष्य जीवन को बहुत पायमाल किया है, उसका चित्र कौनसा लेखक अथवा कलाविद् कभी मालेखन कर सकता है। एक मनुष्य एक काल्पनिक शत्रु पर बैर लेने को निश्चयपूर्वक भाषेश बहुत वर्षों तक रक्खे और उसके लिये समय की वाट देखा करे उसका असर उसके चारित्र पर कैसा होता है, उसका विचार करो। . अत्यन्त क्रोध करने से मनुष्य के शरीर को और मन को बहुत हानि होती है उसका विचार करो। मनुष्य को स्वामाविक स्थिति में बहुत से सप्ताह तक सख्त काम करने से जितनी हानि नहीं होती है, उससे अधिक हानि उसके एक दफा गुस्सा करने से होती है। ___यदि तुम से हो सके तो पीछे से जो भयङ्कर दुःख होता है उसका विचार करो जो लज्जा उत्पन्न होती है; जो पश्चाताप. और खेद उत्पन्न होता है, जो स्वमान की हानि होती है और मनुष्य. जब शुद्धि में आता है, तब बनी हुई घटना की जब वह प्रतीति करता है तब उसकी मृदु लागणियों को जो धक्का पहुँचता है उसकी कल्पना करो। मद्यपान करते क्रोध से मनुष्य के शरीर को और चरित्र को विशेष हानि होती है। मद्यपान से तिरस्कार निष्कलंक जीवन पर विशेष खराब कलंक लगता है। ईर्षा, बैर, क्रोध, निरंकुश शोक इससे शरीर को जितनी हानि होती है उतनी हानि बहुत वर्षों तक अधिक प्रमाण में बीड़ी पीने से नहीं होती है। चिन्ता, खिन्नता और दोष दृष्टि शरीर में तम्बाकू से भी भयङ्कर विष दाखिल करती है। "थोड़े समय पर अधिक.मनुष्यों के मन में क्रोधाग्नि लगी थी अतएव वे माज बहुत खराब स्थिति में है। . . निःशोक, निरंकुश स्वभाव से अक्सर मनुष्यों का जीवन कम हो जाता है अक्सर मनुष्य इतने अधिक क्रूर होते हैं कि वे पीछे घण्टों और घण्टों सक धूजा करते हैं और काम धंधों के लिये सम्पूर्ण नालायक बन जाते हैं। . . मेरे परिचय का एक सारा कुटुम्ब क्रोध पूर्वक कलह करके अपनी शारीरिक स्थिति पायमाल कर देता है और बीमार हो जाता है। उस बुटुम्ब के मनुष्य
SR No.541505
Book TitleMahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size11 MB
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