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________________ ( ३६ ) प्रेस्ताव पास कर दिया है कि आयन्दा समान में ऐसा मृत्यु भोज न किया जाय परन्तु समाज द्रोही जो वास्तव में जीमणप्रमी हैं वे सम्मेलन के प्रस्तावों को ठुकरा कर ऐसे मृत्यु भोज जीमने में तनिक भी नहीं शर्माते हैं। मारवाड़ प्रान्त में सम्मेलन होने के पश्चात् यह पहला कार्य शिवगंज में हुआ है जो सर्वथा निन्दनीय है और शिवगंज के अग्रेसर पंचों को प्रायन्दा ऐसी घटनाएं सम्मेलन के प्रस्ताव विरुद्ध न हो इसके लिये प्रबन्ध करने की हमारी प्रार्थना है जिमसे कि फिर दुबारा ऐसा करने का मौका उपस्थित न हो मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस निन्दनीय प्रथा को फिर हमारे भाई अपनी समाज में स्थान नहीं देंगे और इसी बोझ से लदी हुई और जातीय रुढी रूपी सांकल से जकड़ी हुई हमारी समाज इस से मुक्त हो जायगी। इसी मृत्यु भोज में होने वाले लाखों रुपयों का खर्च का हल भी अंश विद्यादान में जरूर लगाने का प्रबन्ध करें । क्रोध विरुद्ध अात्म संयम मिसेज ऑलिफन्ट कहती है कि "मेरे समक्ष यह सिद्ध करो कि तुम प्रात्म संयम कर सकते हो, अर्थात् मैं कहूंगा कि तुम शिक्षित मनुष्य हो, और आत्मसंयम के बिना दूसरी सब शिक्षा करीब २ निष्फल हैं" जो मनुष्य स्वयम् अपने आपको अंकुश में नहीं रख सकता है उससे बड़ा कार्य करने की आशा नहीं रखी जा सकती। उच्च महत्वाकांक्षा, असाधारण शक्ति और महान पंडित मनुष्यों को और सब तरह से महान आशा देने वाले मनुष्यों को आत्मसंयम् शुन्यता ने गरीष बना दिये हैं। हमें हर दिन वर्तमान पत्र ऐसे मनुष्यों का परिचय कराते हैं कि जो क्रोधावश के वश होकर भयङ्कर प्रहार करते हैं अथवा घात करनेवाली गोली छोड़ते हैं जिससे उसके किसी मित्र की अथवा उसके स्वयम् के जीव की स्वतंत्रता मष्ट होती है। कारागृहों में पड़े हुए कंगाल कैदियों से पूछो कि क्रोधी स्वभाव से उनकी बहुत हानि हुई है ? ऐसे दुर्भागी मनुष्यों में से कई एक को तो मात्र एक पण ही रहा हो परन्तु ऐसे क्रोध से जीवन पर्यन्त उन्होंने स्वतंत्रता गुमा दी है। घाव
SR No.541505
Book TitleMahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size11 MB
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