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________________ ।१८) के कारण वीरनाग ने वहीं स्थिरता की। उसी अरसे में मुनिचन्द्रमरि वहां होने के कारण वीरनाग ने भी वहीं स्थिरता की। उसी अरसे में मुनिचन्द्रसरि भी परिभ्रमण करते करते वहां आ पहुंचे। वीरनाग उनको वन्दन करने गया। वहां स्वधर्मी बन्धुओं ने उसकी अच्छी खातिर की और उसे भरुच ही में ठहरने का प्राग्रह किया। वीरनाग को तो जहां अपना निर्वाह हो वहां ठहरना ही था, अतः यहाँ ही ठहर गया। उसकी स्थिति साधारण होने के कारण घर का कारोबार 'परा कठिनता से चलता था। पूर्णचन्द्र जब पाठ वर्ष का हमा तभी से उसे धन्धा शुरू करना पड़ा। कारण उसके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी। वह भिन्न भिन्न प्रकार के मसाले की फेरी करने लगा। .... एक दिन पूर्णचन्द्र फेरी करने गया वहां क्या देखता है कि एक सेठ घर में से धन बाहर फेंक रहा है। वह सेठ अपने धन को कोयले के रूप में देखता था अर्थात् उसके . दुर्भाग्य से वह धन कोयला हो गया था। यह दृश्य देख पूर्णचन्द्र को बड़ा आश्चर्य हुआ और अपने हृदय में कहने लगा कि मैं तो पैसे के वास्ते गली २ में भटकता फिरता हूँ और यह व्यक्ति धन को इस प्रकार बाहर क्यों फैंक देता है ? उसने सेठ से पूछा सेठ साहब यह क्या कर रहे हो ? - सेठ उत्तर देता है तुझे क्या काम है ? तुझे इतना भी नहीं दिखाई देता है कि ये कोयले घर में पड़े हैं इनको घर से बाहर फेंक रहा हूँ। पूर्णचन्द्र यह उत्तर सुन कर आश्चर्य करने लगा कि मुझे तो यह सब स्वर्ण मोहरें दिखाई देती हैं। तुमको कोयला क्यों दिखाई देता है ? जब सेठ ने पूर्णचन्द्र का यह उत्तर सुना तो वह अपने हृदय में कहने लगा कि यह बालक अवश्य भाग्यशाली मालूम होता है। तब सेठ ने पूर्णचन्द्र से कहा यदि तुझे यह सब सुवर्ण मोहरें दिखाई पड़ती है तो इन कोयलों को इस टोकरे में भर कर मुझे दे। ज्योंही पूर्णचन्द्र ने उन सुवर्ण मोहरों को स्पर्श किया त्यों ही वे सेठ को भी असली रूप में दिखाई देने लगी। जब सेठ को यह ज्ञात हुमा कि इस बालक के स्पर्शमात्र से ही यह चमत्कार बना है तो वह उस पर बहुत प्रसन्न हुआ और उसे एक स्वर्ण मोहर दी।
SR No.541505
Book TitleMahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size11 MB
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