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क्रिया गिनी जाती थी। राजकुमार हो अथवा वणिककुमार हो, हरएक को ब्रह्मचर्य और व्यायाम द्वारा शारीरिक क्रिया करने की सख्त जरूरत है। पहिली उम्र में शरीर पुष्ट हो गया तो हो गया फिर तो जगे वहाँ से ही सुबह है । बाद में राई का भाव रात को बीत गया वाली कहावत ही रह जायगी ।
शारीरिक पुष्टता ज्यों पुरुषों के लिये जरूरी है त्यों स्त्रियों के लिये भी जरूरी है। जब पूर्व काल की कुमारियों और महिलामो की शारीरिक शक्ति के वर्णन को देखते हैं, तब आजकल की कमजोर अबलाओं की दशा दरअसल दिलगिरी उत्पन्न करती है कि परिणाम यही है । जैसी भूमि है वैसा पाक होता है। जब तक माताएँ बलशालिनी नहीं हो तब तक बलवान संतान की आशा रखना व्यर्थ है।
आज की कन्या कल की माता है और राष्ट्रीय बिल्डिंग के खंभे पूरे करने की उससे आशा रक्खी जाती है, इस लिये ब्रह्मचर्य काल में कन्याओं को भी • व्यायाम और बल प्रयोग में प्रवीण करने की परम आवश्यकता है।
जिस कैकयी ने रामायण में दशरथ राजा के रथ की धरी को एकाएक टूट जाने से अपनी अंगुली को धरी की जगह रख कर अपने स्वामी नाथ को निराशा में से बाहिर निकाल दिया था, जो सीता रावण जैसे मदोन्मत्त रावस से जरा भी भयभीत नहीं हुई थी और जिस द्रौपदी ने जयद्रथ राजा को धक्का देकर नीचे गिरा दिया था, उनके पराक्रम कैसे होंगे ? ऐसी बलवती माता के पुत्र महान वीर योद्धा होते हैं इसमें जरा भी आश्चर्य ही क्या है ? गुलामी में पैदा होने वाले गुलाम ही होते हैं। बहादुर नेपोलियन का साफ २ कहना है कि वीरता का पाठ उसको उसकी माँ ने सिखाया था। इतिहास इस बात की सादी देता है किसी भी काल में किसी भी समय में जब २ महान पुरुषों द्वारा निस प्रदेश की उन्नति हुई है, उसका आदि कारण उन प्रदेशों की नारीशक्ति है। नारी-जाति को तुच्छ, अज्ञान, निर्बल और उनको एक प्रकार की मशीन समझकर अब तक उनकी जो अवगणना होती भा रही है, उसी की वजह से शक्ति माता का कोप देश पर उतर गया है और देश की दीन दशा सुधारने से नहीं सुधरती है। अभी देश की और खास कर के जहाँ पर्दे का सख्त रिवाज