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________________ ( ११ ) कसाई के यहाँ मरनेवाले जानवरों को बचाने का प्रयत्न किया जाता है। जबकि कन्याबलि के प्रसङ्ग पर उस कन्या को बचाने की बात तो दूर रही, बल्कि इस भारी उत्सव में हंसते मुख शामिल होकर मिष्ट भोजन खाया जाय यह कितनी गजब की बात है ? ऐसे मनुष्यों में पशुदया के माफिक मनुष्यदया हो तो क्यों वे कन्या के होम की क्रिया में शामिल होवें ? अरे यह तो क्या ? ऐसी जगह का पानी भी खून के बराबर समझना चाहिये और कभी भी कन्या खरीदफरोक्त करने वाले दोनों के यहाँ जल ग्रहण नहीं करना चाहिये । मानव-जीवन की उन्नति का पाया ब्रह्मचर्याश्रम में है । ब्रह्मचर्याश्रम के पालन में ही जीवन की सम्पूर्ण विभूतियों का बीज बोया जाता है । इस आश्रम में से सही सलामत पार होना ही दिव्य जीवन में दाखिल होना है। इस श्राश्रम की रक्षा में जो समर्थ निकला और सफल हुआ, तो उसने दरअसल बड़े से बड़ा किला सर किया । ब्रह्मचर्याश्रम की हद कम से कम १६ वर्ष की होनी चाहिये उतने समय तक अखंड ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्याध्यन करना चाहिये । परन्तु वर्त्तमान समय में बालविवाह की प्रथा ने इस सनातन पद्धति को साफ २ उठा दिया है और इसी का यह परिणाम है कि आजकल के नवयुवक और बालाओं के मुख अक्सर निस्तेज और फीके दिखते हैं। कौबत, उत्साह, उल्लास उनमें से करीब २ निकल चुके हैं। जवानी की हालत में फीके चहरेवाले हतोत्साह और कम ताकत दिखते हैं । यह सब परिपक्क समय से पहिले ब्रह्मचर्य के खंडन का ही प्रभाव है । जिस उम्र में शक्ति का विकास आरंभ होता है, बाल लग्नरूपी घातकी कीड़े को अपने अंदर स्थान देने से उसका परिणाम यह माता है कि शक्ति विकास होने के बजाय शक्ति का ह्रास होने लगता है । प्राचीन काल के महापुरुषों की जीवनियों को देखने से स्पष्ट मालूम होता है कि वे योग्य उम्र में विवाहित होने के पहिले विद्याध्ययन के साथ ही साथ शरीर को पुष्ट बनाने और शत्रकला का भी अभ्यास करते थे । दुर्योधन, भीम और अर्जुन के बाल्यावस्था की कसरतें और उनके शस्त्र खेल इस बात की साची देते हैं । चग्म तीर्थङ्कर महावीर देव के पिता राजा सिद्धार्थ के विविध प्रकार के व्यायामों का वर्णन जो कल्पसूत्र में दिया गया है वह स्पष्ट बताता है कि प्राचीन काल के पुरुषों की दिनचयों में व्यायाम - क्रिया भी एक आवश्यक
SR No.541505
Book TitleMahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size11 MB
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