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________________ है, उन प्रान्तों की अबलाएँ इतनी हद तक अबला बन गई है कि वे स्वतंत्रता पूर्वक एक जगह से दूसरी जगह नहीं जा सकती हैं। ___ इस बात का हमेशा खयाल रखना चाहिये कि नारी जाति में ही तीर्थकर अवतार पैदा करने की शक्ति है। नारी आत्मसत्ता में एक ऐसी विलक्षण शक्ति छिपी हुई है कि जिसका समुचित विकास होते ही उसके भाधार पर सारे राष्ट्र का उत्थान हो सकता है अर्थात् जो सुकुमार बालकों के पालने को भुलाती हैं उस में जगत् पर शासन करने की शक्ति मौजूद है । अतएव स्त्रियों का जब से सबला के बजाय अबला नाम दिया गया है तब से देश की स्थिति खराब और प्रजा अबला हो गई है किन्तु समयधर्म अब साफ २ कह रहा है कि पुराने संस्कार को बदल कर स्त्रीवर्ग को सबला बनाने का प्रयत्न करना अत्यन्त आवश्यक है। उनकी आत्मा की गुप्त शक्तियों को विकास में लाने के साधनसामग्री प्रस्तुत करने की बहुत जरुरत है। इसके लिये सबसे पहिले बाल विवाह की दुष्ट रूढ़ि को उखाड़ कर फेंक देने की परम आवश्यकता है। बाल विवाह की होली अकेली पौरवाल जाति में ही नहीं परन्तु यह प्रायः तमाम हिन्दू कौम में सुलग रही है । यह घातक प्रथा एक राक्षस की तरह बहुत समय से देश का खून चूस रही है। देश की दुर्गति के अनेक कारणों में बालविवाह की रुढ़ि भी एक जबरदस्त कारण है। इस पापी रुढ़ि के प्रताप से देश के छोटे २ बालक-बालिकाएँ विवाहित किये जाते हैं और वे १३ वर्ष की उम्र में बालक और बालिकाओं के मातापिता हो जाते हैं उस देश के बालक किस तरह योग्य नागरिक हो सकते हैं ? जिस उम्र में शरीर का विकसित होना भी शुरु नहीं होता है, उस उम्र में विवाह का हो जाना और मांबाप बन जाना यह कितना अघटित है ? कच्ची उम्र के मांबाप से उत्पन्न होने वाली संतान भी दुर्बल और रोगी होती है। कच्ची उम्र में बने हुये मांबाप माता पिता के तरीके और अपनी जिम्मेदारियां कैसे समझ सकते हैं ? असमय में किया हुआ विवाह भाररूप में परिणत होता है और ऐसी व्याधि में पकड़े हुये स्वयम् अपने आप दुर्बलं और रोग वाले होते हैं तो फिर उनकी संतति जो निर्माल्य पैदा होती है उसमें जरा भी शक करने की जरूरत नहीं है। बालमृत्यु की अधिकता का कारण अधिकतर कन्याओं का छोटी उम्र में माता बन जाना ही है। जिन देशों में बाल
SR No.541505
Book TitleMahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size11 MB
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