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આગમજાત निकलकर ताम्र लिप्ति नगरी में आया, वहां विनधर सेठ के वहां रहा उन्होंने भी निकाला, इसके बाद कोई धनावह वहाणवटी के साथ दूसरे द्वीप में गया, वहां से लौटते हुवे जहाज टूटा, निःपुण्यक के हाथ पाटीया लगने से किनारे पहुँचा, वहां किसी ठाकोर के वहां रहा तो चोरों की धाड़ आई, उसमें ठाकोर मारा गया, इसको ठाकोर का पुत्र समजकर पकड़कर अपनी पल्ली में ले गये, वहां दूसरे चोरों ने धाड़ पाड़ी तो उसे वहां से भी निकाला, इस तरह से नवसौ नवाणु अलग २ स्थानों में भटका जहां जाता है, वहां चोर अग्नि पवन वगैरा उपद्रव होने से इसको निकाल देते हैं। __ऐसे अनेक दुःखों को सहन करके एक वक्त अटवी में आया, वहां प्रभावशाली सेलक नाम के यक्ष का मन्दिर देखने में आया, उस यक्ष की बडी भक्ति करने लगा और अपने सब दुःख कह कर उपवास करके बैठा तो उसको २१ उपवास होने से यक्ष तुष्ट होकर कहने लगा कि हे भद्र ! शाम के वक्त एक सोने का मोर यहां नृत्य करने को आयेगा, नृत्य करते. हुए उसके पीछे गिरे सो ले लेना, इससे बडा खुश हुआ और पीछे लेने लगा, लेते लेते नवसौ पीछे इसने ले लिये उस मोर के हजार पीछे थे यह विचार करने लगा के मोर के सौ पीछे बाकी हैं, सो कब पूरा होवेगा! माज शाम को मुट्ठी में सब पीछे पकड़ लेऊँ तो हजार पूरे हो जाय और मेरा इस जङ्गल से छुटकारा हो जाय ऐसा विचार करके शाम के वक्त जब मोर आया और नाचने लगा उस वक उसने मोरके पीछे पकड़ लिये उसीके साथ मोर काग होकर उड़ गया इसके पास के पीछे भी चले गये. फिर विचार करने लगा कि धिक्कार हो मुझे कि मैंने अधिक लोभ किया इससे मेरी यह हालत हुई है। . . ... ऐसे जङ्गल में फिरते २ कोई ज्ञानी मुनिराज मिला गये, उनसे पूर्व भव पूछा उन्होंने ज्ञान के उपयोग से सब कहा और कहा तेने इस तरह से देवद्रव्य का भक्षण किया अब इससे हजार गुना देवे तब तेरा