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________________ २३५ આગમત कितनेक लोग ऐसी शङ्का करते हैं कि देवद्रव्य का स्वरूप बताने में ही शास्त्रकार ने देवद्रव्य को शासन की वृद्धि करने वाला और ज्ञान दर्शन का प्रभावक कहा है। इससे चतुर्विध संघ प्रवचन तथा ज्ञान दर्शन के लिये देवव्य का खर्च करना गैरमुमकिन नहीं है, लेकिन ऐसा कहने वाले को पेश्तर तो उसी गाथा का विवेचन और उसकी टीका जो उपर दी है वह सोचना चाहिए। ___ जो वे लोग शास्त्र को सोचेंगे तो साफ २ मालूम हो जायगा कि देवद्रव्य किसी भी अन्य क्षेत्र में (साधु साध्वी श्ररविका के ज्ञान में) नहीं जा सकता है. जो उस गाथा में प्रवचन की वृद्धि कराने वाला देवद्रव्य कहा है ओर ज्ञान दर्शन का प्रभावक कहा है उसी में ही सोचा होता तो मालूम हो जाता-कि एक स्थान पर कृञ् धातु क्यों रखा ? और दूसरे स्थान पर प्रभाव कपना क्यों रखा है ! इतना होने पर भी इन्हीं श्रीमान् हरिभद्र सूरिजी ने इसी देवद्रव्य के विषय में किसी तरह से शासक की वृद्धि और ज्ञान-दर्शन का प्रभावकपना माना है, वह उन्हीं सूरीश्वरजी की नीचे दी हुई गाथासे स्पष्ट हो जायगा, पिच्छिस्सं एत्थं, इह वंदणगणिमित्तमागए साहू । कयपुण्णे भगवंते, गुणरयणणिही महासद्धे ॥११२६॥ पडिबुझिस्संत्ति इहं, दट्टण जिणंदबिम्बकललंकं । अण्णेऽवि भन्नसत्ता, काहिति तओ परं धम्मं ॥११२७॥ ता एकमेव वित्तं जमित्थमुवओगमेइ अणवरयं । इय चिंताऽपरिवडिआ सासयबुढी उ मोक्खफला ॥११२८॥ "वन्दन के लिये आए हुए पुण्यशाली गुणरत्न का निधान और महासत्व ऐसे साधु महाराज को इधर में देखूगा, याने मन्दिर होने से ऐसे गुणवान साधु महाराज का आना होगा, अब सोचिये कि साधु महाराज के समागम से क्या ज्ञान-दर्शन की प्रभावना नहीं होगी ? इतना ही नहीं
SR No.540004
Book TitleAgam Jyot 1969 Varsh 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgmoddharak Jain Granthmala
PublisherAgmoddharak Jain Granthmala
Publication Year1969
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Agam Jyot, & India
File Size23 MB
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