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________________ આગમત योग प्रवृत्ति से कर्मबंध ___ शुभ या अशुभ मानसिक आदि प्रवृत्ति हो तो पुण्य पापका बंध होता है. इसी वास्ते भगवतीजी सूत्रमें प्रश्न किया कि सयोगीकेवली मोक्ष पाते हैं के नहीं ? सयोगी- मानसिक आदि प्रवृत्तिवाला वह सिद्धी गति पावे या नींह ? तो प्रभुने जवाब दिया कि कभी भी किसी कालमें भी सयोगी केवली मोक्ष पाया नही, पाता नहिं ओर पावेगा भी नही. क्योंकि सयोगी पनेमा कर्मबन्ध है. और कर्मबन्धकी दशामें कोई जीव सिद्धिगतिमें जा सकता नही हैं. ___अब दूसरी बात सम्यक्त्वी जीवका मोक्ष होता है अर्थात् सम्यग्दृष्टि जीव मोक्ष जरुर पायेंगे ए नियम है. तो फिर ए नियम कैसे किया कि - सब ही सम्यग्दृष्टि अर्धपुद्गल परावर्त जितने कालसे भीतर मोक्ष पायेंगे और दूसरी तर्क सयोगीकेवली जो केवलज्ञान पाये है वे कैसे मोक्ष न जायेंगे? यह प्रश्न ठीक है, समजनेलायक हैं. ___समकित दृष्टि का जो मोक्ष कहा है, वह भविष्यमें दूसरी अवस्थामें मोक्ष पायगा, समकित दृष्टि हुआ बाद सर्वविरति लेगा, क्षवकश्रेणि चढेगी और अवस्थांतर के बाद मोक्ष जरुर जायगा - इस हिसाबसे सयोगी केवली की अवस्थामें वे कभी भी सिद्धि गति नही पावेंगे. अलबत सयोगी केवली मोक्ष पाते है, मगर अयोगी केवली अवस्था पाये पाद सिद्धिगति पाते है. जब तक योग है तब तक कर्मका बंध है, जबतक कर्मका बंध है तब तक मोक्ष कभी नहिं मिल सकता है. मानसिक, वाचिक, और कायिकी प्रवृत्ति कर्मबन्ध कराये वगर रहेती नहिं है, सयोगी केवलीकी आखिर दशा तक कोइ कोइ प्रवृत्ति रहेगी ही तो भाव चढेगा केसे ? पहलेसे दूसरे, दूसरे से तीसरे सब जगह पर चढना होवे तो निर्जरा होती है, जिस समय आप भावकी वृद्धि मानोगे उसी समय बंध मानना पडेगा.
SR No.540003
Book TitleAgam Jyot 1968 Varsh 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgmoddharak Jain Granthmala
PublisherAgmoddharak Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages312
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Agam Jyot, & India
File Size20 MB
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