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________________ धर्म प्राप्ति की दुर्लभता (વિ. સં. ૧૯૯૦ અષાઢ વદ ૯ મહેસાણામાં પૂ. આગમતત્વજ્ઞાની બહથતગીતાર્થ ભગવંત ધ્યાનસ્થ સ્વ પૂ. આગમ દ્વારક આચાર્ય દેવશ્રીએ અજીમગંજના બાબૂલેક વંદનાથે આવેલા, તેમના માટે ખાસ હિંદી ભાષામાં આપેલ પ્રવચન પૂ. આ. શ્રી હેમસાગરસૂરીશ્વરજી મ.શ્રીએ, પિતાના સંગ્રહમાંથી મેકલેલ, તેને ગ્ય સુધારા સાથે અહીં અક્ષરશઃ પ્રકાશિત કર્યું છે. સં.) जन्म-कर्मकी अनादि परंपरा धम्मरयणस्स जुग्मो० शास्त्रकार महाराज श्रीमाम् शांतिसूरीश्वरजी महाराज भव्यजीवों के उपकारके लिये धर्मरत्न प्रकरण नामके ग्रंथ में फरमाते हैं कि : इस संसारमें कई जीव अनादि कालसे भटक रहे है, अनादि विना सबब कोई चीज नहिं है. दृष्टांत कल देख गये. अंकुर और बीजका परस्पर कार्य कारण भाव है. विना बीज अंकुर नहीं होता है, उत्पत्तिशक्ति अनादि न होवे तो विना बीज अंकुर मान लिया जाय, किंतु दोनों की परंपरा अनादि से है यह मानता जरुरी है. __इसी तरहसे, जन्म मरण-और कर्मका संबंध अनादिकालसे है. जन्म भी विना कर्म कभी नहीं होता है. कर्म जन्म से बनता है इस, कारण से जन्म देखने से कर्मकी कल्पना करनी पडती हे. कर्मकी पेस्तर जन्म इस तरह कार्य कारणसे जन्म-कर्मकी परंपरा अनादि माननी पडती है. ___मानसिक, वाचिक, कायिक कोई भी प्रवृत्ति - सुंदर या असुंदर चलती है, तभी कर्म बंधाता है, इस कारणसे मोक्षके टाइम पर अजोगी गुणठाणा मानना पडता है. क्योंकि अयोगीगुणठाणा योग विनाका है वहां करमका बंध नहीं है, वहां मोक्ष माननेकी अडचण नहीं आती है.
SR No.540003
Book TitleAgam Jyot 1968 Varsh 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgmoddharak Jain Granthmala
PublisherAgmoddharak Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages312
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Agam Jyot, & India
File Size20 MB
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