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: २६ : inion तीर्थ : प्राचीनताका उल्लेख किया था । पाठकोंके भव- २-कविवरके समय कुमति लोग कहा करते थे लोकनार्थ यह स्तवन मुद्रित किया जाता है। कि मन्दिर मूर्तियां बारहवर्षीय दुष्कालमें बनी
(२) तपागच्छकी प्राचीन पट्टावली जो जैन हैं उन लोगोंकी शंका इन प्राचीन मर्तियोंसे श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स हेरल्ड पत्रके पृष्ट ३३५ में दूर हो सकती है। क्योंकि ये मूर्तियाँ बारह मुद्रित हो चुकी है, उसमें लिखा है :
वर्षीय दुष्कालके ४०० वर्ष पूर्व बनी है । " सम्प्रति उत्तर दिशामां मरूधरमां गांगांणी ३-महाराजा शरसिंहके राजत्वकालका समय नगरें श्री पद्मप्रभस्वामिनो प्रासाद बिम्व निमः . वि० सं० १६५२ से १६७५ तक का है।
४-घाणिका-इस शब्दसे पाया जाता है कि
अर्जनपुरीमें किसी जमानामें घाँणियां अधिक श्री गांगांणीमंडन
चलती हों और लोग उस नगरीको गांगांणी
के नामसे कहने लगे हों तो यह युक्ति पद्मप्रभ एवं पार्श्वनाथ स्तवन
युक्त भी हैं। (रचयिताकविवर समयसुन्दर गणि वि० सं०१६६२) ..
जाव्यो"
____ ढाल
॥ ढाल पहिली ॥
- दुधेला रे नाम तलाव छे जेहनो ।
तस्स पासेरे खोखर नाम छे देहरो । पाय प्रणमुं रे श्री पद्मप्रभ पासना ।
तिण पुठेरे खणता प्रकट्यो भूहरो । गुण गाऊं रे आणि मन शुद्ध भावना ।
परियागत रे जाणि निधान लाधो खरो ॥३॥ गांगांणी रे प्रतिमा प्रगट थई घणी ।
टक तस उत्पत्ति रे सुणनो भबिक सुहामणी ।
लाधो खरो वलि भूहरो एक, सुहामणी ये बात सुणता,
मांहे प्रतिमा अतिवली ॥ - कुमति शंका भानसे ॥
ज्येष्ट शुद्ध इग्यारस, सोलह बासटी, निर्मलो थाशे शुद्ध समकित,
बिंब प्रगट्या मनरली ॥४॥ श्री जिनशासन गाजसे ॥१॥ १-दूधेला तालाब और खोखर नामकका मन्दिर ध्रुव देश मंडोवर महाबल,
आज भी गांगांणीमें विद्यमान है।
२-मुंहारा-तलघर-मुसलमानोंके - अत्याचार के बलि शूर राजा सोहए ॥ समय मूर्तियोंका रक्षण इसी प्रकार किया तिहां गांव एक अनेक घाणिका, जाता था कि उनको तलघर-मुंहारोंमें रख
दिया करते थे। . गांगांणी मन मोहए ॥२॥ ,
" र "" ३-वि० सं० १६६२ ज्येष्ठ शुक्ल अकादशीके १-यह वही गांगांणी है जिसके विषयमें हम दिन मुंहारामें मूर्तियें मिली थी और उनकी यह हिस्ट्री लिख रहे हैं।
जाँच करके ही कविवरने सव हाल लिखा है।