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२२०० वर्षका प्राचीन जैन श्वेताम्बर तीर्थ
गां गां णी तीर्थ
इस तीर्थका जिनालय सम्राट संप्रतिने बनवाया हैं. पहिले इस ग्रामका नाम अर्जनपुरी था. जहां हजारो घरोंकी वसती थी. यह प्राचीन मंदिर दो मंजिल तथा भूमिसे ७२ फीट ऊंचा है. शिल्पकला का आदर्श दृष्टांतरूप है. इस प्राचीन तीर्थका संक्षिप्त इतिहास मुद्रण
होता है. यह पाठकोके लीये अति आवश्यक है.
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राजस्थानमें जोधपुरसे दक्षिण दिशामें करीब कि प्राणियों के आत्मकल्याणके साधन दो हैं२० मीलकी दरी पर गांगांणी नामक स्थान है.। जैनागम व जैनमन्दिर । अतः इस नगरीमें इतिहासके अनुसन्धानसे पाया जाता है कि इस जैनियोकी अधिक आबादी होनेकी दशा में अक नगरीका प्राचीन नाम अजेनपुरी था, जिसे धर्म- भीमकाय, भारतकी प्राचीन शिल्पकलाका द्योतक, पुत्र अर्जुनने बसाई थी। उपकेशगच्छ चारित्र जमीनसे ७२ फीट ऊंचा दुमंजिला मन्दिर हो नामक संस्कृत साहित्यमें जो काव्य ग्रन्थ विक्रम तो कोई आश्चर्य नहीं। की १४ वीं शताब्दिके लेखमें लिखा हुआ है यह मन्दिर विक्रमसे पूर्व २ शताब्दिमें उसके अन्तमें
सम्राट् सम्प्रतिने गांगांणीके आदर्श
बनवाया था और मन्दिरका भी
इसकी प्रतिष्ठा उल्लेख है।
सुप्रसिद्ध जैनाइतिहास इस
चार्य श्री सुहस्तिबातका साक्षी हैं
सूरिजीके कर. कि अक समय
कमलोंसे कराई वह था जब
गई थी। इस नगरीमें
(१) सम्बन् हजारों जैनी
१६६२में प्रकाण्ड निवास करते थे,
विद्वान् एवम् और जिनशासन
प्रसिद्ध कविवर की शोभा बढाते
गणी श्री समयथे । कालचक्रके
सुन्दरजीने इस कुप्रभावसे आज
प्राचीन तीर्थकी वहां अक भी
यात्रा की थी और जैनी निवास नहीं
अक स्तवन रचा करता है । यह
था जिसमें उन्होने असत्य नहीं है
इस तीर्थकी.
2006