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________________ : san५ : सेम२ : १८५६ : ५५ भने पास से वो डाय तो प्राणिमानी २क्ष ने नीमें सूर्योदय पहिले प्रक्षालन पूजादि करना मे। उपहेश आयो, नया पोते तया रीतु ठीक है? पन्ने यी ५... . स० इस तरहसे सूर्योदय पहले प्रक्षालनादि [प्र*नकारः-भण्डारी विवेकचंद जैन. जोधपुर.] पूजन करना ठीक नहीं । जो करते है उसको __ अविधि समजना। श० क्या अकेला साधु अकेली औरतके आ ___ श० रात्रिमागरण मन्दिरजीमें व पुस्तका साथ फेाटू उतरवा सकता है ? आदिके उत्सबमें किया जाता है क्या यह ठीक स० ऐसा फेाटू खिंचाना साधुओंका आचार है ? यदि ठीक है तो इसकी विधि कौनसी नहि है. पुस्तकमें है? श. क्या साधु व साध्वीके फोटू एक ग्रूपमें स० प्रभुजीके और श्रतज्ञानके आगे रात्रि उतरवा सकते है। जागरण करनेका रीवाज परंपरासे है ओर अनेक ___स. केवल साधु साध्वीका एकसाथ फोटू चरित्र ग्रन्थोमें स्पष्ट दीखा जाता है। खिंचवाना नहीं चाहिए । श० पर्युषणपर्वमें, स्वप्न, पालनादिकी बोलीकी श० जलेबी खमीर उठे विना नहीं बन आमदानी कौनसे क्षेत्रमें ले जानी चाहिए ? सकती, क्या उसीदिन खमीर उठी हुई जलेबी स० स्वप्न, पालनादिकी उपज श्री पर्यषणभक्ष्य है या अभक्ष्य ? पर्वमें होती है यह देवद्रव्यमें जानी चाहिए । ___स० बडीफजरमें खमीर जल्दी उठे ऐसी श० पर्यषणपर्वमें कल्पसूत्रजीके पाने झेलचीजों डालकर बनायी हुई जलेबीमें दोषकी नेकी बोली संवत्सरीके रोज बोली जाती है इसकी संभावका कम है । बजारमें मिलती हुई जलेबी आमदानी कौनसे क्षेत्रमें जानी चाहिए ? अभक्ष्य है, क्योंकि सारी रात रहनेबाद खमीर स० ज्ञानद्रव्यमें जानी चाहिए. उठती है. इसलिये श्रावकको वासीका दोष [प्रश्ना:-५८पी सी. अवेरी. सुरत] और सूक्ष्म त्रसजन्तुकी उत्पत्ति होनेसे ऐसी શં૦ સાધુ-સાધ્વીના કાલધર્મ અંગે જે દેવવંદન चीजें खाना अच्छा नहीं। કરાય છે તેમાં કેટલાક સમુદાય સ્તુતિય તરીકે श० अणाहारी चीजोंमें चायका (Tea) सामने संसा२६३। माले छ भने या नाम नहीं है, क्योंकि उस वक्त चायका चलन समुदाय स्नातस्या भने संसारा। साले तो मां नहीं था तो क्या खाली पाणीमें कारी चाय साम ३२२ मत (दूध व खांडके बिना) उकाले हुवे पाणीका स० मा भने स्नातका सामांया पीकर उपवासादिव्रत कर सकता है? ગમે તે બોલી શકે છે, છતાં કલ્લાણદ એ પ્રાચીન ___स० अणाहारी चीज पाणीके साथ अगर तमा पाय ताय १२ मतानी स्तुति३५ पाया पाणीमें डालकर वापरनेसे आहारक बन जाती है पधारे मंगला छे. और चहा अणाहारक चीजोंमें गीनी गई नहीं है। श० श्रीनिमारिना माटो भने अाश्रय अणाहारक चीजें, बहुत कटुक, बेस्वाद होती हैं तभी जनमाहिरना मोटले श्राप माहि भाषाअतः उपवासादिमें चायका अणाहारक गिनकर साहिया समय पसार रे , ते यित मई ? उसका उपयोग करना नहीं चाहीए । સ૦ ઉપરોક્ત સ્થાનોમાં ધર્મકથા હોવી જોઈએ. श मन्दिरजीमें मूल गभारेमें बीजलीकी रोश- मगाटभारपाया होष लागेछे.
SR No.539156
Book TitleKalyan 1956 12 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomchand D Shah
PublisherKalyan Prakashan Mandir
Publication Year1956
Total Pages74
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Kalyan, & India
File Size13 MB
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