________________
ANEKANTA - ISSN 0974-8768
1958 में उन्होंने पहली कविता लिखी थी- 'लै लेव कलेवा मैं ठाँड़ी पिया' जो अब लोकगीत बन गई और वर्तमान में हिन्दी-बुंदेली के श्रेष्ठ कवि के रूप में ख्यात हैं, जिन्होंने बुन्देली भक्तामर भी रचा था। मड़बैया जी के साहित्य पर जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में अनुसंधान भी हुआ और एक शोध शिक्षक को पीएच. डी. भी अवार्ड की गई। कई लघु शोध प्रबंध भी इन पर हुये। इन्होंने देश के सर्वश्रेष्ठ मंचों पर काव्य पाठ तो किया ही, संसार के अनेक देशों यथा अमेरिका, इंग्लैण्ड, जापान, नेपाल, दुबई, सिंगापुर आदि दस देशों में काव्य पाठ कर भारत का नाम रोशन किया। उक्त सुखद खबर से जैन जगत् में खुशी की लहर दौड़ गई और मध्यदेशीय समाज ने तो आदिनाथ जयन्ती पर इन्हें 'जैन समाज रत्न' से अलंकृत भी किया। पद्मश्री अलंकृत होने के तुरन्त बाद ही दिल्ली की जैन समाज ने और आचार्य ज्ञानसागर जी ने उन्हें अभिनन्दित किया एवं बड़ागाँव जैन तीर्थ कमेटी ने अभिनन्दन पत्र, जिनालय नन्दीश्वर द्वीप व साहित्य, अंगवस्त्र आदि भेंट किये। इसके साथ ही भोपाल में साहित्य संसार, कायस्थ समाज, स्वर्णकार समाज एवं वैश्य समाज आदि ने लौटने पर भव्य स्वागत किया।
इसके साथ ही ललितपुर में उत्तर-प्रदेश के केबिनेट मंत्री श्री मनोहरलाल जी पंथ एवं विधायकगणों के नेतृत्व में श्री कैलाश मड़बैया जी का अभिनन्दन किया एवं 'बुन्देलखण्ड रत्न' की उपाधि से अलंकृत किया। जबलपुर में 11 प्रमुख संस्थाओं ने भी भव्य अभिनन्दन किया। वीर सेवा मन्दिर परिवार की ओर से आपको अनन्त शुभकामनाएं।
-डॉ. आलोक कुमार जैन
******