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________________ 67 अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016 दूषण लगाने से, अनेक प्रकार के संक्लेश परिणामों से चारित्रमोहनीय कर्म का बन्ध होता है। (राजवार्तिक पेज 525, गो.कर्म, गाथा 786 में) चारित्र मोहनीय कर्म की पच्चीस प्रकृतियां हैं- अनंतानुबंधी 16 और हास्यादि नोकषाय (गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा-33 के भावार्थ में) जो संयम के मार्ग में व्यवधान उत्पन्न करते हैं और जिससे सत् मार्ग का द्वार नहीं खुल पाता है। ____ वर्तमान समय में कोई भी परिवार, समाज इन कषाय भावों से मुक्त नहीं है। इन की प्रबलता का कारण राग-द्वेष भाव है। गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा-2 में कहा है कि “पयडी सील सहावो जीवंगाणं अणाइसंबंधो। कणयोवले मलं वा ताणत्थित्तं सयं सिद्ध॥" कारण के बिना वस्तु का जो सहज स्वभाव होता है उसको प्रकृति शील अथवा स्वभाव कहते हैं। जैसे अग्नि का स्वभाव ऊपर जाना, उसी प्रकार प्रकृति में यह स्वभाव जीव व कर्म का ही लेना चाहिए। जीव का स्वभाव रागादि रूप परिणमने का है और कर्म का स्वभाव रागादि रूप परिणमाने का है। अर्थात राग से सहित होकर यह जीव अनेक प्रकार के पाप कार्यों में प्रवर्तन करता है वह इष्ट-अनिष्ट का विचार तक नहीं करता गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा-2 के भावार्थ में राग से पीडित व्यक्ति को, शराब या भांग के नशे से पीड़ित बताया गया है कि जिस प्रकार शराबी व्यक्ति नशे में होने पर माता को पत्नि व पत्नि को बहिन कहता है उसी प्रकार राग-द्वेष से पीड़ित व्यक्ति को कषाय के उत्पन्न होने पर इष्टजन, पूजनीय, गुणीजनों का विचार भी नहीं रखता है और मन में उत्पन्न अनेक गलत विचारों का वाचन कर देता है। जिससे अपनी ही सज्जनता पर दाग लगता है, जो कि मानवीय मूल्यों का हनन है। मानव समाज में क्रोध के विपरीत क्षमाभाव, दया, करूणा, वात्सल्यभाव करना चाहिए और यह कार्य तभी संभव है जब हम गुणीजनों को देखकर के अपने हृदय में खुशी का भाव उत्पन्न करें। तब हम अन्य जीवों के प्रति दया दृष्टि कर सकेंगे व क्रोध कषाय पर विजय प्राप्त होगी।
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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