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________________ अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016 गोम्मटसार में कषाय मुक्ति प्रक्रिया का विवेचन - वीरचन्द्र जैन, उदयपुर अनादिकालीन परिभ्रमणशील संसार में, अनंतानंत जीव राशि है। जो सुख प्राप्त करना चाहते हैं तथा उसके उपाय अनेक प्रकार के कार्य करता है। जिसमें उसे सच्ची समझ न होने से वह अंधविश्वास, हिंसा एवं कषायों में प्रवर्तन करता है। भगवान महावीर का जन्म हुआ जब चारों ओर अंधविश्वास, कुरीतियों की कालिख का पिशाच अपने हिंसक हाथों से क्रूरता की कलम लेकर संसार की स्याही से हत्या व हाहाकार का इतिहास लिख रहा था। येन केन प्रकारेण धन कमाने की लालसा ने अनैतिकता और आपाधापी की ऐसी आंधी उठा दी थी कि सात्विक संस्कार तिनकों की तरह तहस-नहस हो रहे थे। सभ्यता की सरिता और मनुजता की महानदी, हिंसा के प्रचण्ड ताप के कारण सूख जायेगी, परन्तु तीर्थकर महावीर के जन्म के बाद समाज की दशा और सभ्यता तथा संस्कृति की दिशा में अमूल-चूल परिवर्तन आया। अनादिकालीन दिग्भ्रांति का कारण मोहनीय कर्म है। मोहनीय कर्म क्या है? तो गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा-21 के भावार्थ में कहा है कि जो मोहे अर्थात् अचेत करे वह मोहनीय कर्म है। मोहनीय कर्म दो प्रकार का है- दर्शन मोहनीय और चारित्रमोहनीय। (गो.सार गाथा-26/27 में) दर्शनमोहनीय का बंधन जीव को सत्मार्ग की अवहेलना करने से और असत्यमार्ग का पोषण करने से, आचार्य, उपाध्याय, साधु आदि सत्य के पोषक आदर्शों का तिरस्कार करने से दर्शन मोहनीय कर्म का बन्ध होता है। (तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय-6, सूत्र 13) स्वयं कषाय करने से अर्थात् क्रोध, मान, माया, लोभ आदि प्रवृत्ति करने से, जगत उपकारी साधुओं की निन्दा करने से, धर्म के कार्यों में अंतराय करने से, मद्य, मांस आदि का सेवन करने से, निर्दोष प्राणियों में
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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