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________________ अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016 बिना ही दो चारण रिद्धिधारी महामुनियों की सूक्ष्म शंका दूर हुई थी तब केवलज्ञान केवलदर्शनादि सामग्री संयुक्त तीर्थकर प्रकृति के पूर्ण विपाक-उदय होने पर उस दिव्यध्वनि के द्वारा समस्त जीवों को उनकी भाषाओं में तत्व बोध हो जाता है इसमें कोई संदेह नहीं है। 'धर्मधर्माभ्युदय' में दिव्यध्वनि का वर्णन करते हुए लिखा है सर्वाद्भुतमयी सृष्टिः सुधावृष्टिश्च कर्णयोः। प्रावर्तत ततो वाणी सर्वविद्येश्वराद्विभोः॥ १६/२० सर्व विद्याओं के ईश्वर जिनेन्द्र भगवान् के सर्व प्रकार के आश्चर्यो की जननी तथा कर्णों के लिए सुधा की वृष्टि के समान दिव्य ध्वनि उत्पन्न हुई। गोमटसार जीवकाण्ड की संस्कृत टीका में लिखा है कि तीर्थकर की दिव्य ध्वनि प्रभात, मध्याह्न, सायंकाल तथा मध्यरात्रि के समय छह-छह घटिका काल पर्यन्त अर्थात् दो घण्टा चौबीस मिनट तक प्रतिदिन नियम से खिरती है। इसके सिवाय गणधर चक्रवर्ती, इन्द्र, सदृश विशेष पुण्यशाली व्यक्तियों के आगमन होने पर उनके प्रश्नों के उत्तर के लिए भी दिव्यध्वनि खिरती है। इसका कारण यह है कि उन विशिष्ट पुण्यात्माओं के संदेह दूर होने पर धर्मप्रभावना बढ़ेगी और उससे मोक्षमार्ग की देशना का प्रचार होगा जो धर्म तीर्थकर की तत्त्व प्रतिपादन की पूर्ति स्वरूप होगी। जयधवला टीका में लिखा है कि यह दिव्यध्वनि प्रातः मध्याह्न तथ सायंकाल इन तीन संध्याओं में छह-छह घड़ी पर्यन्त रिवरती है-तिसंज्झ विसमछचडि यासुणिरंतरं पयट्टमाणिया ( भाग-1, पृष्ठ 126) तिलोयपण्णत्ती में तीन संध्याओं में नवमुहूर्त पर्यन्त दिव्यध्वनि खिरने का उल्लेख है। लिखा है पगदीए अक्खलिओ संझत्तिसदयम्मि णवमुहुत्ताणि। णिस्सरदि णिरुवमाणो दिव्वज्झुणी जाव जोयणयं॥ इसी ग्रन्थ में यह भी कहा है कि गणधर, इन्द्र तथा चक्रवर्ती के प्रश्नानुरूप अर्थ के निरूपणार्थ यह दिव्यध्वनि समयों में भी निकलती है, यह भव्य जीवों को छह द्रव्य, नौ पदार्थ, पाँच अस्तिकाय और सात तत्वों का नाना प्रकार के हेतुओं द्वारा निरूपण करती है।
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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