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________________ अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016 ग्रेने, एस. एन. घोषल, एस. हेन्द्रिकसेन, पिसानी, के. अमृतराव, डॉ. ग्रियर्सन, एमेन्यु आदि प्रमुख हैं। इन्होंने प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषा पर विभिन्न शोध-कार्य किए हैं। उनका अध्ययन आज भी महत्त्वपूर्ण दिशा निर्देश करने वाला है। प्राकृत एवं अपभ्रंश अध्ययन के क्षेत्र में उक्त कार्यों के फलस्वरूप ही वर्तमान में भारत वर्ष में लगभग 4 लाख पांडुलिपियाँ ग्रंथ-भण्डारों, पुस्तकालयों आदि में सुरक्षित होने के प्रमाण हैं। उनमें से पचास हजार के लगभग पांडुलिपियां प्राकृत एवं अपभ्रंश ग्रंथों की है। एक ग्रंथ की अनेक पांडुलिपियां भी प्राप्त होती हैं। फिर भी अब तक लगभग 600 प्राकृत के एवं 200 अपभ्रंश के कवि/लेखक/आचार्य हुए हैं जिनकी लगभग 2000 कृतियां ग्रंथ-भण्डारों में उपलब्ध हैं। इनमें से अब तक लगभग प्राकृत के 350 ग्रंथ एवं अपभ्रंश के लगभग 100 ग्रंथ ही संपादित होकर प्रकाश में आए हैं। इनमें से भी कई अनुपलब्ध हो गए हैं। प्रकाशित सभी प्राकृत एवं अपभ्रंश ग्रंथ किसी एक पुस्तकालय में उपलब्ध भी नहीं है। इक्कीसवीं शताब्दी के अध्ययन के लिए अब तक प्रकाशित प्राकृत एवं अपभ्रंश के समस्त ग्रंथ किसी एक पुस्तकालय में उपलब्ध करना अति आवश्यक है। उक्त तथ्यों से यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इन विद्याओं में इतना कार्य होने पर भी अभी बहुत कार्य करना शेष रह जाता है। इसके अतिरिक्त पांडुलिपियों के सर्वेक्षण, सूचीकरण और सम्पादन के कार्य में लगने वाले विद्वानों की सूची में भी बहुत कम लोगों का ही नाम आता भाषा-विज्ञान की विभिन्न शाखाओं तथा उनकी विविध प्रवृत्तियों के मूल स्वरूप के अध्ययन की दृष्टि से भी मध्य भारतीय आर्य भाषाओं और विशेषकर प्राकृत एवं अपभ्रंश का अध्ययन आज भी उपयोगी एवं भाषा-जगत में अनेक नवीन तथ्यों को प्रकट करने वाला है। इस भाषा-विज्ञान की दृष्टि से इन भाषाओं का बहुत कम अध्ययन हुआ है। इतना अवश्य है कि यदि अध्ययन किया जाए तो ये भाषाएं आज भी शोध एवं अनुसंध न की दृष्टि से समृद्ध तथा नवीन आयामों को उघाटित कर सकती हैं।
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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