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________________ अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 एक मनीषी पाठक का पत्र अनेकान्त और वीर सेवा मन्दिर से मेरा पुराना सम्बन्ध है। आपका अनेकान्त मिलता रहा है- यह आपकी कृपा है। यों तो पं. जुगलकिशोर मुख्तार से भी जब वे जीवित थे, मेरा पत्राचार चलता रहता था। अब मेरी आँखें खराब हो गई हैं। बिना देखे गलत-सलत लिख देता हूँ सुधार । 'अनेकान्त' में प्रकाशित युगवीर गुणाख्यान में पं. जुगलकिशोर मुख्तार का 'हम दुखी क्यों हैं?' शीर्षक लेख पढ़ा। जब वे जीवित थे तो उनके मार्गदर्शन पत्रों द्वारा मिलते थे। अब तो अनेकान्त के कर्मठ सम्पादक से ही आशा है। सुख-दु:ख शरीर का धर्म है। अतः आत्मा के स्तर पर उसे ले जाने से प्रश्न का स्तर भंग हो जाता है। लेकिन हम सब जीव जब सुख-दुःख की बात करते हैं तो उसका सन्दर्भ व्यावहारिक जीवन से रहता है। मुख्तार साहब ने भी इसका विश्लेषण व्यावहारिक स्तर पर ही दिया है। आज अपरिग्रह महावीर के समय से हजारगुना प्रासंगिक है। परिग्रह और मानव सभ्यता साथ-2 नहीं चल सकते हैं। परिग्रह का अध्यात्म से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नही है। इसीलिए भगवान् महावीर, बुद्ध, ईसा मसीह सभी ने इस पर ध्यान दिया है। जैन धर्म यदि इसे सामाजिक धर्म बना सके तो विश्व सभ्यता की बागडोर उसके हाथों में होगी। बधाई स्वीकारें। - प्रो. रामजी सिंह, पूर्व सांसद एवं कुलपति 104, सान्याल एनक्लेव बुद्ध मार्ग, पटना-800001 (बिहार)
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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