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________________ 80 अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 प्रमाणप्रमेयतत्त्वस्येदं चोद्यम्। अतो भिन्नाभिन्नरूपं ब्रह्मेतिस्थितम्। संग्रह श्लोक - कार्यरूपेण नानात्वमभेदः कारणात्मना। हेमात्मना यथाभेद कुण्डलाद्यात्मनाभिदा॥ (पृ. १६-१७) यद्यपि यह कहा जाता है कि भेद-अभेद में विरोध नहीं, किन्तु यह बात वही व्यक्ति कह सकता है जो प्रमाण तत्त्व से सर्वथा अनभिज्ञ इस कथन के पश्चात् अनेक तर्को से भेदाभेद का समर्थन करते हए अन्त में कह देते हैं कि अतः ब्रह्म भिन्नाभिन्न रूप से स्थित है यह सिद्ध हो गया। कारण रूप में वह अभेद रूप है और कार्य रूप में वह नाना रूप है, जैसे स्वर्ण कारण रूप में ही एक है, किन्तु कुण्डल आदि कार्यरूप में अनेक। यह कथन भास्कराचार्य को प्रकारान्तर से अनेकान्तवाद का सम्पोषक ही सिद्ध करता है। अन्यत्र भी भेदाभेद रूपं ब्रह्मेति समधिगतं (2/1/22 टीका पृ. 164) कहकर उन्होंने अनेकान्तदृष्टि का ही पोषण किया है। भास्कराचार्य के समान यतिप्रवर विज्ञानभिक्षु ने ब्रह्मसूत्र पर विज्ञानामत भाष्य लिखा है। उसमें वे अपने भेदाभेदवाद का न केवल पोषण करते हैं, अपितु अपने मत की पुष्टि में कर्मपुराण, नारदपुराण, स्कन्दपुराण आदि से संदर्भ भी प्रस्तुत करते हैं यथा त एते भवद्रूपं विश्वं सदसदात्कम्। पृ. १११ चैतन्यापेक्षया प्रोक्तं व्योमादि सकलं जगत्। असत्यं सत्यरूपं तु कुम्भकुण्डाद्यपेक्षया॥ पृ.६३ ये सभी सन्दर्भ अनेकान्त के सम्पोषक हैं यह तो स्वत:सिद्ध है। इसी प्रकार निम्बार्काचार्य ने भी अपनी ब्रह्मसूत्र की वेदान्त पारिजात सौरभ नामक टीका में तत्तु समन्वयात् (1/1/4) की टीका करते हुए प. 2 पर लिखा हैसर्वभिन्नाभिन्नो भगवान् वासुदेवो विश्वात्मैव जिज्ञासा विषय इति। शुद्धाद्वैत मत के संस्थापक आचार्य वल्लभ भी ब्रह्मसूत्र के श्रीभाष्य (पृ.115) में लिखते हैं -
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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