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अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016
तथा काण्डत्वक्। (१०) पटोल२४ = परवल (Wild snake gourd)
इस द्रव्य को साधक के लिए पथ्य कहा गया है।
गुण-कर्म - व्रणरोधक, तृप्तिघ्न, तृष्णानिग्रहण, ग्राही, रक्तदोष, कास, ज्वर, कृमि, कण्डू, कुष्ठ, दाह, शीतला, मूत्रकृच्छ्र, तृष्णा, कोठ, विष, अरोचक, तथा मेहनाशक। पाचन, रेचक, रोचक, दीपन, त्रिदोषशासक।
प्रयोज्यांग- पञ्चांग, मूल, पत्र एवं फल। (११) रम्भा२५ = केला (Banana Tree)
योग से सम्बद्ध ग्रन्थों में इस द्रव्य को साधक के लिये पथ्य कहा गया है।
गुण-कर्म - मधुर रस, मधुर विपाक, शीतवीर्य, कफवर्धक, वातशामक, स्निग्ध, तृप्तिदायक। तृष्णा, दाह, क्षत, क्षय, नेत्ररोग, मेह, शोष, कर्णरोग, अतिसार, रक्तपित्त, बलास, योनिदोष, कुष्ठ, क्षुधा, विष, व्रण, अस्थिस्राव, सोमरोग तथा शूलनाशक। (१२) वास्तूक.६ = बथुआ (Lambs Quarters)
योग से सम्बद्ध ग्रन्थों में इस द्रव्य को साधक के लिये पथ्य कहा गया है।
गुण-कर्म - मल-मूत्रशोधक, स्वर्य, रेचक। प्लीहा रोग, कृमिरोग, ज्वर, शल, रक्तपित्त तथा रक्तदोषशामक
प्रयोज्यांग- पञ्चांग, पत्र, पुष्प, कलिका, बीज एवं तैल। (१३) शुण्ठी३७ = सोंठ (Dry ginger)
___ इस द्रव्य को साधक के लिए पथ्य कहा गया है। जिह्वा तथा कण्ठ का शोधन होता है एवं क्षुधा की वृद्धि होती है। कहा जाता है कि 'भोजनाभे सदा पथ्य लवणार्दक भक्षणम्।'
गुण-कर्म - आमवात, वमन, श्वास, शूल, कास, हृदय रोग, श्लीपद, विबन्धशूल, शोथ, अर्श, आनाह, उदररोग, वातविकार, बद्धोदर, आध्मान, हिक्का, पाण्डु, सड्.ग्रहणी तथा अग्निमान्द्य नाशक। कफ वातशामक। (१४) कारवेल्ल३९ = करेला (Carilla Fruit)