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अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016 (६) खजूर२९ = खजूर (Date palm)
योग से सम्बद्ध ग्रन्थों में इस द्रव्य को साधक के लिए पथ्य कहा
गया है।
गुण-कर्म - मधुर रस, मधुर विपाक, शीत वीर्य, गुरु, स्निग्ध गुण, वातपित्त शामक। रुच्य, हृद्य, तर्पण, विष्टम्भी, शुक्रल, बल्य, दीपन, बृंहण, वृष्य, पुष्टिकारक, श्रमहर। ज्वर, अतिसार, क्षत, तृष्णा, कास, श्वास, मद, मूर्छा, कोष्ठगतवात, छर्दि, क्षय, रक्तपित्त, मदात्यय, तथा दाहनाशक। प्रयोज्यांग- पत्र, पुष्प, फल, बीज एवं मूल। (७) जम्बु२१ = बड़ी जामुन (Jambul Tree)
योग से सम्बद्ध ग्रन्थ में इस द्रव्य को साधक के लिए पथ्य कहा गया है।
गुण-कर्म - कण्ठरोग, शोष, कृमिदोष, श्वास, कास, अतिसार, दाह, श्रम, हृदरोग, मेदोरोग, यानिदोष, तृष्णा, रक्तपित्त, मधुमेह, रक्तदोष, व्रण, शोष, मुखजाड्य तथा अतिसार नाशक। रुचिकारक पाचक, वीर्य पुष्टिकर, मूत्रसंग्रहीणीय, मल स्तम्भक।
प्रयोज्यांग- काण्डत्वक्, फल, बीज, पत्र। (८) तुलसी३२ = तुलसी (Holy basil)
योग से सम्बद्ध ग्रन्थ में इस द्रव्य को साधक के लिए पथ्य कहा गया है।
गुण-कर्म - कफवातशामक, पित्तवर्धक, रुचिकारक, दाहकारक, व्रणशोधक। कुष्ठ, पार्श्वशूल, हिक्का, कास, श्वास, विष दोष, प्रतिश्याय, दौर्गन्ध्य, कृमिरोग, शोफ, अतिसार, दाह, मेदोविकार, कुष्ठ, दद्रु, त्वग्रोग, ज्वर, तथा भूतबाधा नाशक। प्रयोज्यांग- पञ्चांग, मूल, पत्र एवं बीज (९) दाडिम३ = अनार (Pomegranate)
इस द्रव्य को साधक के लिए पथ्य कहा गया है।
गुण-कर्म - यह त्रिदोषहर, तृप्तिकारक, पाचक, लघु, किञ्चित् कसैला, मलावरोधक, स्निग्ध, मेध्य, बलकारक, ग्राही, दीपन तथा तृष्णा, दाह, ज्वर, हृदय रोग, मुख दुर्गन्ध, कण्ठरोग और मुख रोगनाशक होता है।
प्रयोज्यांग- पुष्प, फल, बीज, पत्र, मूलत्वक्, फल त्वक् (छिलका)