SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016 अहिताहार (हिताहार के प्रतिकूल आहार अत्याहार या न्यूनाहार (मिताहार के प्रतिकूल आहार) व झूठ, बेइमानी आदि अमानवीय तरीके से अर्जित आहार (ऋताहार के प्रतिकूल आहार) का सेवन न करने पर ही आहार-शुद्धि की संकल्पना पूर्ण होती है। पातञ्जलयोग, हठयोग, जैनयोग, बौद्धयोग, सिद्धयोग, नाथयोग व सन्तयोग आदि विविध योग-परम्पराओं द्वारा लिखित प्रायः सभी प्रकार के ग्रन्थों के अन्दर पथ्य-अपथ्य द्रव्य के रूप में विविध वानस्पतिक द्रव्यों का उल्लेख मिलता है। चूँकि वे ग्रन्थ मूल रूप में संस्कृत या प्राकृत या पालि आदि भाषाओं में लिखे गये हैं, अतः उनमें नामोल्लिखित उन वानस्पतिक द्रव्यों की पहचान करना काफी मुश्किल होता है। इतना ही नहीं, उन द्रव्यों का हिन्दी-अंग्रेजी भाषा में नामकरण, आधुनिक वानस्पतिक नाम, उनके गुण-धर्म, प्रयोज्यांग आदि का उल्लेख उन ग्रन्थों में नहीं मिलता है। उन जानकारियों के अभाव में साधक की साधना भी प्रभावित हो जाती है। परिणामतः साधक को साधना में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाती। अतः यहाँ पर विशेषतः योगमार्ग के पथिकों के सहायतार्थ गुणों की दृष्टि से पथ्यापथ्य योगशास्त्रोक्त द्रव्यों में से कुछ द्रव्यों की आयुर्वेदीय ग्रन्थों से उपर्युक्त जानकारियाँ लेकर उन्हें प्रामाणिक रूप में प्रस्तुत करने के साथ-साथ जिन द्रव्यों का योगशास्त्रों में मुख्यतः पथ्य या अपथ्य आहार द्रव्य के रूप में उल्लेख मिलता है, उनका भी स-सन्दर्भ समावेश किया जा रहा है।20। (१) इक्षु = गन्ना (Sugar-cane) इस द्रव्य को साधक के लिए पथ्य कहा गया है। गुण-कर्म - मधुर रस, मधुर विपाक, शीत वीर्य, गुरु, स्निग्ध गुण, वातपित्तशामक। आयुष्य, धातुवर्धक, शुक्रजनन, सारक, कृमिकर, मूत्रल, कण्ठय, स्तन्यजनन, शुक्रशोधक, श्रमहर, कफवर्धक, संतपर्ण, बल्य, प्रसादजनन, ओजोवर्धक, रक्तपित्तशामक। प्रयोज्यांग- मूल तथा काण्ड। (२) एला२३ = इलायची (Lesser Cardamom) योग से सम्बद्ध ग्रन्थ में इस द्रव्य को साधक के लिए पथ्य कहा
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy