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________________ अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 और उतनी ही आय होती है / जितना व्यय । आय और व्यय / इन दोनों के बीच एक समय का भी अन्तर नहीं पड़ता जिससे कि / संचय के लिए श्रेय मिल सके। यहाँ पर / आय-व्यय की यही व्यवस्था अव्यया मानी गई है / ऐसी स्थिति में फिर भला अतिव्यय और अपव्यय का / प्रश्न ही कहाँ रहा? यहाँ "उत्पादव्ययीव्ययुक्तं सत्" को सम्यक् प्रकार से समझाया गया है। धन की प्राप्ति भाग्य और पुरुषार्थ से होती है, भीख माँगने या दीनता से नहीं आचार्य श्री ने 'मूकमाटी' में इस सूक्ति का स्मरण कराया है कि - " बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख। 25 इस तरह हम देखते हैं कि 'मूकमाटी' में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने जो अर्थदृष्टि दी है वह प्रत्येक व्यक्ति और समाज के लिए अनुकरणीय है। सन्दर्भ 1. आचार्य विद्यासागर 2. वही, पृष्ठ 13 5. वही, पृष्ठ 43 8. वही, पृष्ठ 189 11. वही, पृष्ठ 204 14. वही, पृष्ठ 357 17. वही, पृष्ठ 460-61 20. वही, पृष्ठ 396 23. वही, पृष्ठ 414-415 25. मूकमाटी, पृष्ठ 454 : मूकमाटी, पृ. 7 3. वही, पृष्ठ 27 6. वही, पृष्ठ 189 9. वही, पृष्ठ 192 पृष्ठ 205 12. वही, 15. वही, 91 4. वही, पृष्ठ 32 7. वही, पृष्ठ 189 10. वही, पृष्ठ 201 13. वही, पृष्ठ 307-308 16. वही, पृष्ठ 366 19. वही, पृष्ठ 386-87 22. वही, पृष्ठ 468 पृष्ठ 366 18. वही, पृष्ठ 350 21. वही, पृष्ठ 467-468 24. उमास्वामी : तत्त्वार्थसूत्र, 5/30 सहायक प्राध्यापक- अर्थशास्त्र, सेवासदन महाविद्यालय, बुरहानपुर (म.प्र.)
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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