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________________ अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 वाले संयत मुनि की वन्दना करो। यहाँ हम आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य में इस प्रकरण को देखेंगे। उन्होंने वन्दनीय और अवन्दनीय का किस प्रकार विवेचन किया है। वन्दनीय : आचार्य कुन्दकुन्द ने किन साधुओं की वन्दना करनी चाहिए उसकी चर्चा करते हुए सूत्रपाहुड में लिखा है पंचमहव्वयजुत्तो तिहिं गुत्तिहिं जो स संजदो होई। णिग्गंथमोक्खमग्गो सो होदि हु वंदणिज्जो य।। (सूत्रपाहुड-20) जो पाँच महाव्रत और तीन गुप्तियों से सहित है वही संयत-संयमी मुनि होता है और जो निर्ग्रन्थ मोक्षमार्ग को मानता है वही वन्दना करने योग्य है। बोधपाहुड में वे कहते हैं - जे चरदि सुद्धचरणं जाणइ पिच्छेइ सुद्धसम्मत्तं। सा होइ वंदणीया णिग्गंथा संजदा पडिमा॥ (बोधपाहुड-११) जो निरतिचार चारित्र का पालन करते हैं, जिनश्रुत को जानते हैं, अपने योग्य वस्तु को देखते हैं तथा जिसका सम्यक्त्व शुद्ध है, ऐसे मुनियों का निर्ग्रन्थ शरीर जंगम प्रतिमा है। वह वन्दना करने योग्य है। प्रवचनसार में गुणाधिक मुनियों के प्रति कैसी प्रवृत्ति होनी चाहिए यह कहते हैं दिट्ठा पगदं वत्थू अब्भुट्ठाणप्पधारणकिरियाहिं। वट्टदु तदो गुणादो विसेसिदव्वोत्ति उवदेसो॥ (प्रव.गा.3/61) अर्थात् निर्ग्रन्थ रूप से धारक उत्तम पात्र को देखकर जिनमें उठकर खड़े होने की प्रधानता है ऐसी क्रियाओं से प्रवृत्ति करना चाहिए, क्योंकि गुणों के द्वारा आदर विनयादि विशेष करना योग्य है ऐसा अरिहन्त भगवान् का उपदेश है। आगे इस वन्दना की प्रक्रिया का भी वर्णन करते हुए कहते हैं कि इस लोक में निश्चय पूर्वक अपने से अधिक गुण वाले महापुरुषों के लिए उठकर खड़े होना, आइये-आइये आदि कहकर अंगीकार करना, समीप में बैठकर सेवा करना, अन्नपानादि की व्यवस्था कराकर पोषण करना, गुणों की प्रशंसा करते हुए सत्कार करना, विनय से हाथ जोड़ना तथा नमस्कार
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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