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अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 (5) तीर्थकर :- इसी स्थल से पुरुष मूर्ति प्राप्त हुई है जो अत्यन्त
आकर्षक है इसके दोनों हस्त और कटि के नीचे का भाग खण्डित है। इस प्रतिमा में उष्णीष, लम्बे कर्ण, श्रीवत्स, अर्द्धनिमीलित नेत्र
और मुद्रा किसी तीर्थकर प्रतिमा के होने का संकेत देती है? उक्त प्रतिमा स्थानीय पाषाण बलुआ पत्थर द्वारा निर्मित है। ) जैन युगलिया :- यह युगल मूर्ति गौरिक वर्णीय बलुआ पत्थर से निर्मित है। स्त्री-पुरुष दोनों ललितासन मुद्रा में बैठे हैं। पुरुष का मख भंग है। स्त्री प्रसन्न मद्रा में है। स्त्री की गोद में शिश का अंकन है। स्त्री का शरीर सौष्ठव मोहक है। स्त्री का केश-विन्यास उत्तम है। सिर पर 'बोरला' (Hair Band) बंधा है। छ: शिश क्रीडावस्था
में प्रदर्शित हैं। (छ) श्राविका :- इस श्राविका मूर्ति के कटि के नीचे का भाग खण्डित
है। यह अंजलिबद्ध मुद्रा में है। लम्बी नाक और ओष्ठ पतले हैं। यह आभूषणमय है। कर्ण में कुण्डल, ग्रीवा में हार, भुजाओं में बाजूबन्द, हाथ में कड़े, कमर में करधनी धारण किये सुशोभित हो रही है।
यह प्रतिमा भी बलुआ प्रस्तर द्वारा निर्मित है। मूर्ति अभिलेख :
उत्खनन से चौदह अभिलेख प्राप्त हुए हैं। ये अभिलेख प्रस्तर की मूर्तियों के आसन में उत्कीर्ण है जो निम्न है - १. मर्ति का नाम - ऋषभदेव की कायोत्सर्ग प्रतिमा
मूल अभिलेख- 'ओ (सिद्धम्) सं0 1034? आषाढ़ वदि ' हिन्दी अनुवाद वि.सं. 1034 आषाढ़ कृष्ण पक्ष नवमी (977 ई.)
को इसकी स्थापना करवाई।
नाम- श्रुत देवी जैन सरस्वती मूल अभिलेख-'ओं (सिद्धम्) संवत्सहस्रे सप्तषष्ठे सैकरिक्य श्रीवाज्राम राज्ये सांतिविमलाचार्यवसतौ वैसाखस्य सुद्धनवम्यां संचामरभाल्लिक्य र्शेष्ठीभिः (गैष्ठीभिः) तीसरस्वती संस्थापिता आहिलेन चं
हिन्दी अनुवाद- ‘ओं (सिद्धम्) वि0 सं0 1067 बैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी (1010 ई0) के दिन सीकरी के निवासी श्री वज्राम' के राज्य में