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________________ अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 सम्यग्दर्शन के अनायतन : एक चिन्तन -डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन 'भारती' सम्यग्दर्शन को मोक्षमार्ग की प्रथम सीढ़ी कहा गया है। इससे ही मोक्षमार्ग का प्रारम्भ होता है। देव-शास्त्र-गुरु एवं धर्म पर श्रद्धा सम्यग्दर्शन के लिए जरूरी है। 'मोक्खपाहुड' में आचार्य श्री कुन्दकुन्द ने लिखा है कि हिंसारहिए धम्मे अट्ठारहदोसवज्जिए देवे। णिग्गंथे पव्वयणे सद्दहणं होइ सम्मत्तं।' अर्थात हिंसादि रहित धर्म, अठारह दोष रहित देव. निर्ग्रन्थ प्रवचन अर्थात् मोक्षमार्ग व गुरु इनमें श्रद्धा होना सम्यग्दर्शन है। आचार्य श्री समन्तभद्र ने रत्नकरण्डश्रावकाचार में सम्यग्दर्शन का स्वरूप बताते हुए कहा कि श्रद्धानं परमार्थानामाप्तागमतपोभूताम्। त्रिमूढापोढमष्टांग सम्यग्दर्शनमस्मयम्॥ अर्थात् सत्यार्थ देव-शास्त्र और गुरु; इन तीनों का आठ अंग सहित, तीन मूढ़ता और आठ मद रहित श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन कहा जाता है। आचार्य श्री उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र में लिखा है कि-“तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्'३ अर्थात् अपने-अपने स्वभाव में स्थित तत्त्वार्थ के श्रद्धान को सम्यग्दर्शन कहते हैं। तत्त्व सात हैं ___“जीवाजीवास्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम्।" अर्थात जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष; ये सात तत्त्व हैं। 'मोक्खपाहुड' में तत्त्वरुचि को भी सम्यग्दर्शन कहा है“तच्चरुई सम्मत्तं।" श्री कार्तिकेय स्वामी ने सम्यग्दृष्टि को परिभाषित करते हुए कहा है
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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