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अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016
25. योगदर्शनभाष्य, 1.5, 2.3, 12-13 आदि 26. न्यायभाष्य, 1.1.2 27. मीमांसासूत्र शाबरभाष्य, 2.1.5 28. कर्मबन्ध, प्रथम, गाथा। 29. परमात्मप्रकाश, 1.62
30. तत्त्वार्थसूत्र, 8.1-2 31. गोम्मटसार कर्मकाण्ड 32. 'कम्मुणा उवाही जायइ।'- आचारांगसूत्र, 3.1 _ 'कामादिप्रभवश्चित्रं कर्मबन्धानुरूपतः।' - आप्तमीमांसा 33. 'जो खलु संसारत्थो जीवो तत्तो दु होदि परिणामो।
परिणामादो कम्मं कम्मादो होदि गदिसुगदी।। गदिमधिगदस्स देहो देहादो इंदियाणि जायते। तेहिं दु विसयग्गहणं तत्तो रागो व दोसो वा।। जायदि जीवस्सेवं भावो संसारचक्कवालम्मि।
इदि जिणवरेहिं भणिदो अणादिणिधणो सणिधणो वा।।' - पञ्चास्तिकाय 34. उत्तराध्ययनसूत्र, 25-45 35. वृहदारण्यकोपनिषद्, 3.2.13, सांख्यकारिका 44, योगसूत्र 2.14, योग्यभाष्य, 2.12 36. विशुद्धिमग्ग, 17.88 37. 'शुभः पुण्यस्याशुभ: पापस्य।' - तत्त्वार्थसूत्र, 6.3 38. पञ्चतन्त्र (विष्णु शर्मा)
39. धम्मपद, 9.12 40. शान्तिशतक, श्लोक 82
41. भगवतीसूत्र 42. पञ्चास्तिकाय, गाथा 67 43. महाभारत, वन पूर्व अध्याय 30 श्लोक 28 44. द्वात्रिंशिका, श्लोक 30 45. 'आद्यो ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्नामगोत्रान्तरायाः।' -तत्त्वार्थसूत्र, 8.4 46. गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 21 47. तत्त्वार्थसूत्रवार्तिक, 8.22
- अध्यक्ष, अ. भा. दि. जैन विद्वत्परिषद 429, पटेलनगर, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)