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________________ अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 युगवीर 'गुणाख्यान' हम दुखी क्यों हैं? वीर सेवा मंदिर के संस्थापक युगमनीषी पं. जुगलकिशोर 'मुख्तार'युगवीर का एक निबन्ध- 'हम दुखी क्यों हैं? आज से 52 वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ था। निबंध में दुःख के कारणों और कैसे सुखी बनें, पर जो विचार, मुख्तार साहब ने बताये थे, वे आज भी कसौटी पर खरे उतर रहे | 'युगवीर' गुणाख्यान की इस श्रृंख्ला में उक्त निबंध का सारगर्भित संक्षेपीकरण प्रस्तुत किया जा रहा है। इसे पढ़ें और अपने अन्तर्मन को टटोलें, आत्म-समीक्षा करें कि हम अपने दुःखों से कैसे निजात पा सकते संपादन एवं प्रस्तुति- पं. निहालचंद जैन पूर्व निदेशक, वीर सेवा मंदिर आजकल हमें सुख नहीं, आराम और चैन नहीं। तरह-तरह की चिन्ताओं ने हमें घेर रखा है और हम इसी उधेड़बुन में रहते हैं, कि हमको सुख मिले, चिन्ताओं का भार उतरे और आत्मा को शान्ति की प्राप्ति हो। इसी सुख-शान्ति की खोज में, देश-विदेशों में मारे-मारे फिरते हैं। तेली के बैल की तरह धन्धों की पूर्ति के पीछे चक्कर लगाते रहते हैं, लेकिन उनकी पूर्ति का अन्त नहीं आता। हर जायज नाजायज तरीके सेउचितानुचित रूप से रुपया पैदा करने के पीछे पड़े हुए हैं। हम कौन हैं, कहाँ से आए हैं, क्यों आए हैं, कहाँ जायेंगे, कब जायेंगे, इन बातों को सोचने का समय ही नहीं है। अपनी स्वार्थसिद्धि के सामने दूसरों की जान, माल, इज्जत और प्रतिष्ठा का कुछ भी मूल्य नहीं है। प्रश्न है दु:ख क्यों बढ़ रहा है? कुछ कारणों पर विचार करेंगे। (१) धार्मिक पतन- धर्म सुख का कारण है और कारण से ही कार्य की सिद्धि होती है। धर्म अकेला एक ऐसा मित्र है, जो परलोक में भी साथ जाकर इस जीव के सुख का साधन बनता है। उसी से आत्मा का
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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