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________________ 88 अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 व्यवधान भी निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इसके अतिरिक्त मुनि पद को स्थिर रखते हुए इस रोग का प्रतिकार किया जाना भी सम्भव नहीं है। तब उन्होंने अपने गुरु से समाधि मरण की आज्ञा प्रदान करने का अनुरोध किया। उनके गुरु ने आदेश दिया कि प्रथमतः तुम मुनिपद का परित्याग कर अपनी भस्मक व्यरधि को शान्त करो। व्याधि के शान्त होने पर प्रायश्चित पूर्वक पुनः मुनिपद धारण कर लेना। गुरु की आज्ञा शिरोधार्य कर प्रथम उन्होंने अपने मुनित्व का त्याग किया। पश्चात् वे कांची के राजा को अपने आशीर्वचनों से प्रसन्न कर वहाँ के शिव मंदिर में आने वाले चढ़ावा (भाग) को अकेले ही भक्षण करने लगे। कुछ दिनों तक लगातार प्रचुर मात्रा में गुरू और मधुर आहार मिलने से कालान्तर में उनकी जठराग्नि की तीव्रता कम होने लगी और अन्ततः उनकी भस्मक व्याधि का शमन हुआ। इससे स्पष्ट है कि शरीर में व्याधि की उत्पत्ति किस प्रकार उत्पन्न कर शरीर के दैनिक कार्यों में बाधा उत्पन्न कर देती है। इससे धर्माचरण, दैनिक चर्या और साधना में तो व्यवधान उत्पन्न होता ही है, मन में भी आकुलता हो जाने से अशुभ कर्मबन्ध का भागी होना पड़ता है। व्याधिग्रस्त होने के कारण शरीर को जो कष्ट या वेदना भोगनी पड़ती है उसका प्रभाव मनुष्य के मन पर भी पर्याप्त रूप से पड़ता है। जिससे मन में आकुलता का भाव उत्पन्न होता है। वह आकुलता का भाव ही कर्म बंध का कारण होता है। अतः शरीर की रूग्णता जहाँ धर्म साधन में बाधा उत्पन्न करती है वहाँ शारीरिक आरोग्य धर्माचरण में सहायक होता है। ___ इसी क्रम में जैनधर्म के प्रभावक मनीषी श्री उग्रादित्याचार्य ने दो प्रकार के स्वास्थ्य का प्रतिपादन करते हुए उनके महत्व को भी सार्थक रूप से प्रतिपादित किया है। उसके अनुसार स्वास्थ्य दो प्रकार का होता है- एक पारमार्थिक स्वास्थ्य और दूसरा व्यावहारिक स्वास्थ्य। श्री उग्रादित्याचार्य के अनुसार इस द्विविध स्वास्थ्य में प्रथम परमार्थ स्वास्थ्य प्रधान या मुख्य है और दूसरा व्यवहार स्वास्थ्य अप्रधान या गौण। यथा अथेह भव्यस्य नरस्य साम्प्रतं द्विधैव तत्स्वास्थ्यमुदाहृतं जिनैः। प्रधानमाद्यं परमार्थभित्यतो द्वितीयमन्यद् व्यवहारसम्भवम्॥
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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