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________________ अनेकान्त 68/4, अक्टू-दिसम्बर, 2015 नी भूलूँ उपकार कणी रा, मन में नी लाऊँ खोटाई। गुण देखू गुण लेऊँ सबसुँ, करज चुकाऊँ पाई-पाई।।6।। कोई खराब या हउ केवै, धण-दौलत आवै-जावै। लाख वरस तक जीऊँ या पछै मौत अबारू आई जावै। और कसो ई दुनिया रो डर या लालच मन में आवै। तोई न्याय ईमान ( म्हारो कदी न पग डगवा पावै।।7।। सुख में नी फूलूँ भूलूँ म्हूँ, दुख में कदी न घबराऊँ। कसो भयंकर मसाण जंगल वै तोई बढ़तो जाऊँ। डगपच नी वैवा दूं मन ने ताकतवर मजबूत वणाऊँ। वै संजोग वियोग जगत में राखू धीरज सुख पाऊँ।।8।। सगळा जीव सुखी रै जग में कोई कदी न घबरावै। पाप वैर छोड़ी ने यो जग, रोज नवा मंगल गावै। हिलमिल ने रेवै सगळा ई, घर-घर में आणन्द छावै। आत्मा रा सब पाप धोईने, मनख जमारो सफल वणावै।।9।। असल वगत पर वरखा वेवै, ना हूको ना बाढ़ सतावै। नी वै कोई रोग बीमारी, शान्ति सुँ जनता जीवै। प्रजा रो भलो छावा वारो राजा सबरी वात हणै। धरम अहिंसा मनखपणा सुँ, धरती आखी स्वरग बणै।।10।। मन दुखावणी कड़वी भासा, कोई कदी कने नी बोले। वस्तु-स्वरूप विचार करी ने दुखड़ा संकट सब झेले। मेहनत कर ने करै सब जणा, अपणो अपणो देस विकास। बण जावै 'जुगवीर' हिया सुँ, 'दिलीप धींग' रे मन री आस।।1।। मूल : आचार्य युगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' राजस्थानी पद्यानुवाद : डॉ. दिलीप धींग (एडवोकेट) निदेशक- अंतराष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन व शोध केन्द्र, सुगन हाउस, 18, रामानुजा अय्यर स्ट्रीट, साहुकारपेट, चैन्नई-600079
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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