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अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015
पाठकों के पत्र...
'अनेकान्त' नियमित प्राप्त हो रहे हैं। इसमें प्रकाशित शोधपूर्ण और तर्कबद्ध लेख कई जिज्ञासाओं का समाधान करते हैं। श्री अनिल अग्रवाल का लेख 'क्रम नियमित विशेषण का अभिप्रेतार्थ विषय वस्तु पर अच्छा प्रकाश डालता है।
मुखपृष्ठ के अन्त:भाग में प्राचीन प्रतिमाओं के चित्र. भित्तीचित्र ताड़पत्रों शिलालेखों के चित्र प्रकाशित करना एक सराहनीय कदम है जो पाठक की भावदशा को उन्नत करता है एवं शोध-निबंधों को आत्मसात् करने की पूर्व भूमिका तैयार करता है। सम्पादक मण्डल का बहुत-बहुत अभिनंदन।
___ - महेन्द्र मोतीलाल गांधी (से.नि. इंजी.) मुम्बई
'अनेकान्त' नये परिवेश में प्रकाशित हो रहा है। तदर्थ बधाई। जून 2014 अंक में संपादकीय- 'वर्तमान में श्रमणचर्या की विसंगतियाँ एवं निदान' पढ़ा। सम्पादक विद्वान ने 'चल तीर्थ' की आगमोक्त व्यवस्था के संदर्भ में बहुमुखी- कहीं कहीं लज्जाजनक स्थिति को रेखांकित कर सुध र हेतु ध्यान आकर्षित किया है।.... सितम्बर 2014 अंक का संपादकीय 'पुरातत्त्व एवं नव निर्माण' विचारोत्तेजक और दिशा बोधक है। दोनों अंकों के आलेख शोधपरक पठनीय हैं। सम्पादक मण्डल का आभार।
- डॉ. राजेन्द्र कुमार बंसल, बी-369, ओपीएम कालोनी, अमलाई (शहडोल) म.प्र.
Respected Pt. Nihalchand Jain
Thank you very much for a quarterly research journal for Jainology "Anekant". Jain model of life spam, a scientific approach by Dr. Samani Chaitya Pragya is a wonderful article, bringing Science and religion together. I am layman ignorant and your sir have deep study of jainology. Kindly keeping touch with me.
- T. K. Jain C-3A/86-B, Janakpuri, New Delhi-110058