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अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 मृगु-पत्नी यशा दो पुत्र, पुरोहित भोगवादों से लिप्त था। दोनो पुत्रों के त्याग भाव की महत्ता से प्रबुद्ध हुए। न प्रजया न धनेन, त्यागौनैकेनामृत्व मानयुः (गा. १३, १४ अ. १४) अर्थात न संतान से, न धन से किन्तु एक मात्र त्याग से ही लोगों का अमृत्व प्राप्त होता है। पुत्र पत्नी के साथ पुरोहित भोगों को त्यागकर अभिनिष्क्रमण करते हैं। यह सुनकर कुटुम्ब की धन सम्पत्ति की चाह रखने वाले राजा को कमलावती ने बोध दिया व दोनों ने भोग त्यागकर प्रवज्या की।
समता, सयम समियाए धम्मे आरहहिं पवेदिते१९ - समता में धर्म कहा है सम अर्थात समता धारण करना अर्थात् सम-श्रम, पुरुषार्थ पूर्वक जीवन व्यतीत करना। भगवती आराधना में कहा है- सब वस्तुओं में जो अप्रतिबद्ध (ममत्वहीन) है वही सब जगह समता को प्राप्त करता है। सव्वत्थ अपडिनद्वो उवेदिं सव्वत्थ समभावं २० आचारांग सूत्र में२१ - आत्मजाग्रत व्यक्ति न तो विरक्ति से दुखी होता है और न प्रसन्न क्योकि समता में सब बराबर है। भयातुर व्यक्ति ही संग्रह करता है। समता के लिये सरलता का जीवन जीना आवश्यक है। बनावटीपन से समता नही आयेगी। समता बिना तपस्या, शास्त्र अध्ययन, मौन सब व्यर्थ है। आज के युग में महान अमिताभ के बारे में पढ़ा था कि वे असुविधा के लिये शिकायत न कर समता रखते थे। चैन्नई में “आखरी रास्ता" फिल्म की शूटिंग थी। गर्मी इतनी थी कि सभी परेशान व शिकायत कर रहे थे। बच्चन जी को सीन में शाल ओढ़ना था। कुर्सी पर बैठे पढ रहे थे, जब पूछा गया कि इतनी गर्मी में शाल ओढ़कर भी, शान्त कैसे बैठे हैं। बोले "If I don't think about heat don't feel it यह है Big BLegend की समता। सामायिक की बहुत प्रतिष्ठा है जिनका मुख्य लक्षण समता है। मन की स्थिरता की साधना समभाव से आती है। त्रण, कंचन, शत्रु, मित्र आदि विषमताओं में आसक्ति रहित होकर उचित प्रवृत्ति करना ही सामायिक है। सरल व अभय व्यक्ति ही विसर्जन में विश्वास करता है। परिग्रह की आग को संयम के जल से शमित करें। विसर्जन में अवरोधक - मानवीय स्वभाव की असीम इच्छा-तुष्णा, लोभ एवं आसक्ति का समन्वित रूप है। अतः इच्छा सीमांकन, लोभ संवरण, अनासक्ति अपरिग्रह वृति में सहयोगी है।