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________________ 60 अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 धन कमाओ, पर डूब न जाओ। प्रसन्न मन से दिया गया थोडा दान भी वरदान बन जाता है। जैसे शालीभद्र के लिये हुआ। मेघरथ राजा ने भी तीर्थकर गोत्र बांधा। इससे पुण्य बंध होता है। पाप की निर्जरा होने से रोग नहीं होता, वैज्ञानिक कारण यह है कि अच्छी भावना से श्वेत रक्त कण की संख्या बढती है, रोग प्रतिरोधक शक्ति बढती है। चारों ओर प्रभावशाली प्रभामण्डल बनता है। संक्रामक रोगाणु भी प्रवेश नहीं कर पाते। अच्छे व्यक्तियों के मस्तिष्क से अल्फा तरंग, बीटा, थीटा अच्छी तरंगे निकलती है अतः सेवादानी भावी अत्यन्त प्रसन्न प्रभावशाली चुम्बकीय शक्ति से युक्त होते है निडर होते है। गौरवं प्राप्यते दानात् न तु वित्तरस्य संचयात्। स्थितिरुच्चैः पयोदानां पयोधानामधः स्थितिः॥१३ धन देने से गौरव प्राप्त होता है, संग्रह करने से नहीं। बादलों की उच्च स्थिति देने से ही है। समुद्र की नीचे स्थिति संग्रह से है। आकाश के काले बादल बरस कर जब श्वेत हो जाते है वे यह संकेत करते है कि वितरण में ही मुनष्य की शुद्धता है। कौटिल्य शास्त्र में लिखा है- दान से यश सुख सौभाग्य व देने की योग्यता व उदात्त भावनायें बनती है। समाज के हर व्यक्ति की आवश्यकताएँ पूर्ण होती हैं। टाल्सटॉय का कथन है- अच्छा आदमी वह है जिसके पास दो कोट है। वह एक कोट उस व्यक्ति को दे, जिसे सख्त जरूरत है। महान वे हैं जिसके जीने से बहुत प्राणी, जीते हैं। जैसे चद्रमा उदित होता है तो वह सारे नक्षत्र व तारे को भी चमकने का अवसर देता है। दान देने के नियम :- महावीर ने कहा है दान देने के पूर्व मन में कोई आशंका, पछतावा, अंहकार न हो, दान गुप्त हो विज्ञापन की वृति से दिया दान पवित्रता खण्डित करता है। दान देते वक्त मुँह नीचे हो ताकि लेने वाले को संकोच न हो। रहिम ऐसे नवाब थे वे प्रतिदिन दान देते, पर आँख नीची करके। एक याचक को दो तीन बार दान ले चुकने के बाद भी दिये जा रहे थे। यह देख कवि गंग ने उनसे पूछा - सीखे कहा नवाब जी देती ऐसी देन। ज्यों ज्यों कर ऊँचे बढ़े त्यों त्यों नीचे नैन। रहिम बोले - देने वाला और है जो देता दिन रैन।
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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