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अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 हैं, इसीलिए हमारी भाषा मिथ्या होती है, अपर्याप्त होती है और प्रायः विरोधाभासी भी।
अन्ततः यह कहा जा सकता है कि जैन दर्शन के अहिंसा, अपरिग्रह व अनेकान्त तथा गांधी के स्वधर्म, स्वदेशी व स्वराज की अवधारणा जीवन के लिए नया दृष्टिकोण है। ये समग्र रूप से एक नवीन मानव जीवन की संरचना प्रस्तुत करते हैं। हमारी जीवन शैली को संयमित करते हैं तथा एक नवीन विश्व व्यवस्था के निर्माण का आधार प्रस्तुत करते हैं। इसमें प्रकृति के प्रति प्रेमपूर्ण व्यवहार, मानवीय गरिमा का सम्मान तथा संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान सम्मिलित है।
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संदर्भ : 1. आचार्य महाप्रज्ञ, जैनदर्शन के मूल तत्त्व, आदर्श साहित्य संघ, दिल्ली, 2001 पृ. 19-21 2. Ali Asaraf, Gandhian Approach to Sustainable Development (Gandhism after Gandhi) Mittal Publication, New Delhi, 1999, p.17 3. दसवैआलियं, जिनदासचूर्णि, पृ. 20 एवं श्री भिक्षु आगम विषयकोश, संपादक-आचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं, 1996, पृ. 76 4. आचार्य महाप्रज्ञ, टीकाकार-आचारांग, भाष्य, जैन विश्वभारती, लाडनूं, 2001, 3.46 5. आचार्य तुलसी, जैन सिद्धान्त दीपिका, आदर्श साहित्य संघ, चुरू, अध्याय-6 6. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा 2990-91 एवं श्री भिक्षु आगम विषयकोश, संपादक-आचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती, लाडनूं, 1996, पृ.196 7. http/jainismus.hubpages.com/hub/Gandhi-and-Jainism 8. Gandhi M.K., An Autobiography or the Story of My Experiments with Truth, Navajivan Publishing House, Ahmedabad, 1990 p.226 9. same. 10. शोभाचन्द्र भारिल्ल (संपा.), अनुवाद-मुनिश्री प्रवीणऋषि जी महाराज, प्रश्नव्याकरण, श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, 2000, 2.107, पृ.159 11. Gandhi M.K., An Autobiography or the Story of My Experiments with Truth, Navajivan Publishing House, Ahmedabad, 1990; p.33; Romain Rolland, Mahatma Gandhi Published in Great Britain, 1924, p. 4 12. आवश्यकसूत्र, पृ. 22 एवं श्री भिक्षु आगम विषयकोश, संपादक- आचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं, 1996 पृ. 625