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________________ अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 आत्मपीडन जिसका प्रयोग सत्याग्रह में भी किया जाता है; के लिए गांधी का तर्क विरोधियों के तर्कों को काटने की तर्कपूर्ण रणनीति के रूप में प्रयुक्त किया जाना है।" दूसरों को समझने के लिए केवल तर्क पर बल देना अपर्याप्त है। गांधी के शब्दों में- यदि तुम वास्तव कुछ महत्वपूर्ण करना चाहते हो तो तुम्हें केवल तर्क को ही संतुष्ट नहीं करना है, तुम्हें हृदय तक प्रवेश करना होगा । तर्क का सम्बन्ध मस्तिष्क से है। हृदय में प्रवेश कष्ट सहने से होता है। इससे एक व्यक्ति को भीतर से पहचानने की शुरूआत होती है।” इस प्रकार समता और आत्मपीड़न दूसरों को समझने के लिए उच्च अवस्थाएं हैं। कई अर्थों में ये रूपांतरण के साधन के रूप में प्रयुक्त होती है। अनेकान्त और संघर्षमुक्त संस्कृति : अनेकान्त सत् के विभिन्न रूपों का सिद्धान्त है। दूसरों के विचारों को जानने के लिए जैनदर्शन ने अनेकान्त के सिद्धान्त पर बल दिया। रुचि, विचार और व्यवहार में विरोध संघर्ष का मूल कारण है।" जैन दर्शन यह स्वीकार करता है - मानवीय समझ में इन विरोधों को दूर करना या समाप्त करना आसान नहीं है। स्वयं के दृष्टिकोण के आधार पर विरोधी विचारों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए अपितु मतों की विभिन्नता का गलत और सही का दावा किये बिना सम्मान होना चाहिए। 52 गांधी ने 1926 में लिखा था- "मैं अपने दृष्टिकोण से सदैव सत्य होता हूँ और कई बार मेरे आलोचकों के दृष्टिकोण से गलत। मैं जानता हूँ कि हम दोनों ही अपने-अपने दृष्टिकोणों से सही हैं। 19 अनेकान्त प्रत्येक व्यक्ति के दृष्टिकोण को समान महत्त्व देती है। दूसरे को समझने में यद्यपि कुछ दृष्ट एवं कुछ पृष्ठ होते हैं किन्तु वहां कभी भी कोई हाथ ऊपर नहीं होता है। इसीलिए वहां विरोधी विचारों के प्रति भी पर्याप्त सम्मान होता है। गांधी कहते हैं- " मैं सत् के विभिन्न रूपों के इस सिद्धान्त को बहुत पसंद करता हूँ। यह वह सिद्धान्त है जिसने मुझे एक मुसलमान को उसके दृष्टिकोण से, एक ईसाई को उसके दृष्टिकोण से समझना सिखाया। जैनदर्शन के धरातल पर मैं ईश्वर के अकर्ता रूप को प्रमाणित करता हूँ और रामानुज दर्शन के धरातल पर ईश्वर के कर्ता रूप को। वस्तुतः तो हम सभी सत्य के सम्बन्ध हम अविचारणीय पर विचार करते हैं, अवर्णनीय की व्याख्या करते हैं, अनाम को जानने की इच्छा करते
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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