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________________ 50 अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 बात करते हैं तो उनका उद्देश्य समाज के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष- दोनों प्रकार की हिंसा को समाप्त करना था। __हिंसा के अभाव की स्थिति को ही शांति नहीं कहा जा सकता है। शांति की संस्कृति अथवा समाज में शांति की स्थापना तभी हो सकती है जब जीवन के प्रति सम्मान, करुणा, दया, अभय, मैत्री आदि के रूप में पल्लवित हो। दूसरे शब्दों में, जहां सभी का उत्थान हो, गांधी जिसे सर्वोदय कहते हैं। अत: गांधी और जैनदर्शन के अनुसार अहिंसा सद्गुणों की स्थापना और दुर्गुणों का उन्मूलन है। सद्गुणों का विकास जीवन में स्वेच्छिक रूप से स्वीकृत व्रतों के पालन से होता है। 18 वर्ष की आयु में गांधी जब वकालत की पढाई करने इंग्लैण्ड जा रहे थे तब उनकी माँ उन्हें इंग्लैण्ड भेजने में हिचकिचा रही थी। उन्होंने सुन रखा था- युवा, विवाहित व्यक्ति जब इंग्लैण्ड गये तो वे भ्रष्ट हो गये। उस समय गांधी की माँ ने जैन संत बेचरजी स्वामी से परामर्श किया। उन्होंने कहा- गांधी विदेश जाने से पूर्व माँ के समक्ष कुछ व्रत ग्रहण करें तभी उन्हें विदेश गमन की अनुमति दी जा सकेगी। गांधी ने प्रतिज्ञा ली- मैं विदेश में मांस, मदिरा और परस्त्रीगमन का त्याग करता हूँ। व्रत ग्रहण करने पर ही मेरी माँ ने मुझे जाने की अनुमति दी।' इन व्रतों एवं कुछ अन्य बातों के कारण से मैं समय बचा सका जिससे मुझे धर्मग्रन्थों के गंभीर अध्ययन का अवकाश मिला। इच्छापरिमाण, स्वदेशी व स्वराज जैन दर्शन और गांधी दोनों ही आर्थिक विकास के विरोधी नहीं है। उस आर्थिक विकास से कोई हानि नहीं है जो नैतिक पतन और सांस्कृतिक गिरावट से अछूता हो। इसीलिए आर्थिक क्रियाओं का निषेध नहीं है यदि वे प्राकृतिक एवं सामाजिक बाध्यताओं के अनुरूप हों। दोनों ही विचारधाराओं में अर्थशास्त्र गहन रूप से नैतिकता से संबद्ध रहा है। सतत विकास का लक्ष्य तभी पूरा हो सकता है जब मानवीय गतिविधियां मनुष्य व प्रकृति के साथ सामंजस्य रखकर संपादित की जाएं। इच्छापरिमाण, इच्छाओं का विलोपन नहीं अपितु इच्छाओं का अल्पीकरण है। इस सीमाकरण का मूल उद्देश्य यद्यपि आध्यात्मिक उत्थान है किन्तु इसका परिणाम सामाजिक व आर्थिक विकास के रूप में भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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