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अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 5. शुक्ल अभिजाति शुक्ल धर्म करने वाली। 6. शुक्ल अभिजाति अकृष्ण-अशुक्ल धर्म करने वाली।
पातंजल योगदर्शन में योगी के कर्म तथा दूसरों का चित्त कृष्ण, अशुक्ल- अकृष्ण तथा शुक्ल-ऐसा त्रिविध पातंजल योग 4/7 में वर्णित है-“कर्माशुक्ला-कृष्णं योगिनस्त्रिविधमितरेषाम्।"
वहीं दूसरी ओर व्यवहार में यदि लेश्या के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व को समझा जा सकता हैकृष्णा लेश्या के द्वारा- आरौिद्रः सदा क्रोधी, मत्सरो धर्मवर्जितः,
निर्दयी, वैर संयुक्तो, कृष्णा लेश्या युतो नर। नीललेश्या के द्वारा- आलस्यो मंदबुद्धिश्च, स्त्रीलुब्धश्च प्रवंचकः,
कातरष्ठच सदामानी, नील लेष्ठया यतो नरः। कापोत लेश्या के द्वारा- शोकाकुलः सदारुष्टः, परनिंदा आत्म-प्रशंकः।
संग्रामे प्रार्थयते मृत्यु, कापोत लेश्यायुतो नरः। पीत लेश्या के द्वारा- प्रबुद्धः करुणायुक्तः, कार्याकार्यविचारकः।
लाभालाभे सदाप्रीतिः, पीतलेश्या युतो नरः। पदमलेश्या के विचार- दयाशीलः सदा त्यागी, देवतार्चनतत्परः,
शुचिमूर्तः सदानन्दः, पद्मलेश्या युतो नरः। शुक्ल लेश्या के विचार- रागद्वेषविनिर्मुक्तः, शोकनिन्दाविवर्जितः।
परमात्मभावसम्पन्नः शुक्ल लेश्या युतो नरः।। आज लेश्या सिद्धान्त का विषय रह गया है। आज व्यवहारिक पहल पर Colour-Philosophy की प्रयोग विधि की आवश्यकता है। संदर्भ : ' षट्लेश्या-मुनि श्री 108 स्वभावसगर जी महाराज अवतरणिका, प्रकाशक- सकल दिगम्बर जैन समाज ऋषभदेव (केशरियाजी) जिला-उदयपुर, 8.9 2 पण्णावणासुत्त 13/2
__ ठाणांग 1/51 * जैन लक्षणावली-भाग 3, बालचन्द सिद्धान्तशास्त्री पृ. 970, प्रकाशक- वीर-सेवा-मन्दिर, 21, दरियागंज, नई दिल्ली-2, सन् 1979
अभिधान राजेन्द्र कोश, खण्ड-6, पृ. 675 • गोम्मट्टसार, जीवकाण्ड-489' संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ, पृ. 967 * जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, डॉ. सागरमल जैन, पृ. 514 * दर्शन और चिन्तन, भाग-2, पष्ट 112 10 गोम्मटसार 489/894/12, सर्वार्थसिद्धि 2/6/159/10 " षटखण्डागम 136